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IV

राज्यों के बजट

1.

राज्य का बजट क्या होता है

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यूनियन बजट की तरह, राज्यों में भी विधानसभा के सामने राज्य के वित्त मंत्री बजट पेश करते हैं। राज्य का बजट पेश करने से लेकर उसे तैयार करने और लागू कराने तक के पीछे की प्रक्रिया में काफी काम होते हैं। सबसे पहले, राज्य सरकार के लिए ये समझना बेहद जरूरी है कि वह अपनी बजट प्राप्तियों के लिए कहां से और कितना पैसा जुटा सकती है। इसके साथ ही, सरकार को यह भी समझना होता है कि जुटाई गई धनराशि को कहां खर्च किया जाएगा, ताकि उसका बजट खर्च तैयार किया जा सके। कमाई और खर्च के अलावा, राज्य के बजट में कुछ अन्य प्रमुख दस्तावेजों को शामिल किया जाता है। जैसे अनुदान की मांग, जेंडर बजट स्टेटमेंट और बच्चों के कल्याण पर स्टेटमेंट आदि। इन सभी कारकों को देखते हुए, राज्य के बजट के अलग-अलग पहलुओं और उन्हें अंतिम रूप देने में शामिल चरणों को समझना बेहद जरूरी है। इसको ध्यान में रखते हुए, वर्तमान चैप्टर को निम्नलिखित हिस्सों में बांटा गया है: 

  1. राज्य सरकार कहां से धनराशि जुटाती है
  2. राज्य सरकार कहां धनराशि खर्च करती है
  3. बजट के मुख्य दस्तावेज कौन से होते हैं

नीचे इन तीनों बिंदुओं को विस्तार से बताया गया है।

राज्य सरकारों के बजट को बनाने की प्रक्रिया काफी जटिल और लंबी होती है। राज्य सरकारों की बजटीय प्रक्रिया के अलग-अलग चरणों को पढ़ने के लिए कृपया चैप्टर 6 पर नजर डालें।

यहां यह ध्यान देने की जरूरत है कि राज्यों को अपने बजट बनाने में कुछ हद तक आजादी (स्वायत्तता) प्राप्त है। इसलिए, इन तीनों पहलुओं में से हर एक में राज्यों में मतभेद हो सकते हैं।  

2.

राज्य सरकार कहां से धनराशि जुटाती है

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राज्य सरकारों के पास धनराशि जुटाने के कई स्रोत हैं। नीचे उन स्रोतों की लिस्ट दी गई है जिनसे राज्य सरकारें धन जुटा सकती हैं:a

सेंट्रल टैक्स में राज्यों की हिस्सेदारी 

भारतीय संविधान के मुताबिक, केंद्र सरकार को जुटाए गए सभी टैक्स रेवेन्यु का एक हिस्सा राज्य सरकारों के साथ साझा करना जरूरी है। केंद्र सरकार टैक्स कलेक्शन के जिस हिस्से को राज्य सरकारों के साथ बांटती है, उसे सेंट्रल टैक्स (केंद्रीय करों) में राज्यों के हिस्से के रूप में भी जाना जाता है।

स्टेट का अपना टैक्स रेवेन्यु

ऐसे कई टैक्स होते हैं जो राज्य सरकारें लगाती हैं या उनके जरिए मिलने वाला पैसा सीधे राज्य सरकारों के पास जाता है. जीएसटी को छोड़कर, इन टैक्स की दरों को भी राज्य सरकारों तय करती हैं, और इसलिए ये हर राज्यों में अलग अलग होता है। राज्य सरकारों के रेवेन्यु में योगदान करने वाले मुख्य टैक्स हैं: 

  • गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (माल एवं सेवा कर): GST राष्ट्रीय स्तर पर लगाया जाने वाला टैक्स है और इससे जुड़े फैसलों को भी जीएसटी काउंसिल लेती है. कुल GST कलेक्शन के तीन घटक (कंपोनेंट) हैं, इनमें राज्य GST (SGST) और एकीकृत जीएसटी (IGST) का हिस्सा सीधे राज्य सरकारों को जाता है।
  • स्टेट एक्साइज ड्यूटी: केंद्रीय उत्पाद शुल्क यानि स्टेट एक्साइज ड्यूटी उन वस्तुओं के उत्पादन पर लगाया जाता है जो जीएसटी के तहत नहीं आते हैं। GST लागू होने के बाद मुख्य आइटम जिस पर राज्य उत्पाद शुल्क लगाता है वह शराब है।
  • सेल्स टैक्स और वैट: कुछ आइटम ऐसे हैं जिनकी बिक्री GST के दायरे में नहीं आती है। ऐसी वस्तुओं की बिक्री राज्य सेल्स टैक्स (बिक्री कर) या राज्य VAT (मूल्य वर्धित कर) के तहत आती है।
  • स्टाम्प एंड रजिस्ट्रेशन ड्यूटी: यह आम तौर पर जमीन और/या अचल संपत्तियों जैसे फ्लैट/मकान/भवन की बिक्री पर लगाया जाता है।
  • वाहन रजिस्ट्रेशन: जैसा कि नाम से समझ आ रहा है, ये टैक्स नए वाहनों के रजिस्ट्रेशन या स्वामित्व के बदलाव पर लगाया जाता है।
  • एंटरटेनमेंट टैक्स: ये टैक्स आमतौर पर फिल्म टिकट की बिक्री आदि पर लगाया जाता है।

 2विस्तार से समझने के लिए, कृपया चैप्टर 2 देखें (चैप्टर2 का लिंक)

राज्य का नॉन-टैक्स रेवेन्यु

  • प्राकृतिक स्रोतों की लीज/सेल: राज्य सरकार के पास अधिकार होता है कि वो आर्थिक मकसद से प्राकृतिक संसाधनों को या तो बेच सकती हैं या पट्टे पर दे सकती हैं। इसके लिए वे रसीदें प्राप्त करते हैं। खनिजों का पट्टा कई राज्यों, जैसे ओडिशा, झारखंड और छत्तीसगढ़, के लिए प्रमुख स्रोत है।

टैक्स रेवेन्यु के अलावा, राज्यों के पास रेवेन्यु जुटाने के लिए दूसरे स्रोत भी हैं। इनमें से सबसे महत्वपूर्ण हैं: 

  • आर्थिक सेवाएं: सरकार कुछ सेवाएं प्रदान करती हैं जिनके लिए इस्तेमाल करने वालों से फीस लेती है, जैसे- सिंचाई, स्वास्थ्य, शिक्षा, वानिकी और वन्य जीवन, आदि। ये फीस किसी मुनाफे के मकसद से नहीं ली जाती है और प्राइवेट सेक्टर की तुलना में ये काफी कम होती है। लेकिन फिर भी राज्य सरकार के राजस्व में इजाफा करती है।
  • लॉटरी की बिक्री: कई राज्य लॉटरी की बिक्री के व्यवसाय में लगे होते हैं, इनसे होने वाला मुनाफा सरकार के खातों में जाता है।
  • ब्याज की प्राप्तियां: सरकार कई ईकाइयों जैसे पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग्स (PSUs), स्थानीय निकायों आदि को लोन देती हैं। ऐसे लोन पर सरकार को ब्याज हासिल होता है।

उधार

जैसा कि केंद्रीय बजट में होता है, जब राज्य सरकार का खर्च, कमाई से ज्यादा हो जाता है, तो वह इस घाटे को पाटने के लिए पैसा उधार लिया जाता है। हालांकि, इस उधार के पैसे को ब्याज के साथ चुकाना भी होता है। 

फिगर 1: 2020-21 के लिए केरल की कमाई बजट की एक जानकारी देता है।

फिगर 1: केरल की बजट प्राप्तियां, 2020-21

स्रोत: केरल की बजट प्राप्तियां, 2020-21

फिगर 2 केरल की प्राप्तियों का एक विवरण प्रदान करता है, और एक विश्लेषणात्मक रूप में प्रस्तुत करता है।

फिगर 2: केरल की बजट प्राप्तियों के घटक (कंपोनेंट) 

स्रोत- बजट प्राप्तियां, केरल बजट 2020-21

केरल के अपने टैक्स रेवेन्यु में जीएसटी, सेल्स टैक्स और वैट, टिकट और रजिस्ट्रेशन, वाहनों पर लगने वाला टैक्स और राज्य एक्साइज टैक्स शामिल हैं। ये सभी टैक्स मिलकर केरल की कुल प्राप्तियों का 47 प्रतिशत योगदान देते हैं, और राज्य के रेवेन्यु का सबसे बड़ा हिस्सा है। इन प्राप्तियों में सेंट्रल टैक्स की सबसे ज्यादा हिस्सेदारी है। 

ध्यान देने वाली बात है कि अलग-अलग राज्यों में प्राप्तियों की हिस्सेदारी अलग होती है। दूसरे शब्दों में कहें तो, केरल के अलावा दूसरे राज्यों में, इन स्रोतों का योगदान अलग होता है। 

3.

राज्य सरकार कहां पैसे खर्च करती है

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भारत के संविधान में उन क्षेत्रों का जिक्र किया गया है, जिनके लिए राज्य सरकारें पूरी तरह से या संयुक्त रूप से केंद्र सरकार के साथ जिम्मेदार हैं।

नीचे राज्य सरकारों की जिम्मेदारियां फिगर 3 के जरिए समझायी गई है।

फिगर 3: राज्य सरकारों की जिम्मेदारियां

राज्य सूची उन क्षेत्रों को दिखलाती है जिनके लिए राज्य सरकारें जिम्मेदार हैं, जबकि समवर्ती सूची में वे क्षेत्र आते हैं जो राज्य और केंद्र सरकार दोनों की मिलीजुली जिम्मेदारी हैं। 

फिगर 4 उन वस्तुओं की सूची की जानकारी देता है जिन पर केरल सरकार ने अपने 2020-21 के बजट में खर्च की योजना बनाई है।

फिगर 4: केरल के 2020-21 बजट का रेवेन्यु खर्च

स्रोतों- बजट खर्च, केरल बजट 2020-21

यह चित्र केवल रेवेन्यु अकाउंट होने वाले बजट खर्च को प्रदर्शित करता है, राज्य सरकारें भी कैपिटल अकाउंट से पैसे खर्च करती हैं। फिर भी, फिगर 3 के कॉलम 1 में उन प्रमुख श्रेणियों को दिखलाया गया है जिन पर राज्य सरकारें अपना पैसा खर्च करती हैं।

फिगर 5 दिखाया गया है कि केरल सरकार के बजट में कुल रेवेन्यु और कैपिटल खर्च की हिस्सेदारी कितनी है.

फिगर 5: केरल सरकार के प्रमुख खर्च, बजट 2020-21

यह सभी खर्चों की पूरी सूची नहीं है। फिगर 5 में शामिल खर्चों में राज्य के कुल खर्च का लगभग 82 प्रतिशत हिस्सा है।  

4.

राज्य सरकार के लिए बजट दस्तावेज क्या हैं?

Section titled राज्य सरकार के लिए बजट दस्तावेज क्या हैं?

केंद्र सरकार की तरह, राज्य सरकारों को भी संविधान द्वारा बजट प्रक्रिया के लिए कुछ जरूरी दस्तावेज पेश करना अनिवार्य है। ये हैं वो दस्तावेज: 

  1. सालाना फाइनेंशियल स्टेटमेंट: भारत के संविधान के आर्टिकल 202 के तहत, हर वित्तीय वर्ष के लिए राज्य की अनुमानित कमाई और खर्च का विवरण राज्य विधानसभा के सामने पेश करना होता है। इस स्टेटमेंट को "सालाना फाइनेंशियल स्टेटमेंट (वार्षिक वित्तीय विवरण या AFS) या "बजट" के रूप में जाना जाता है। यह वो मुख्य बजट दस्तावेज है, जो आने वाले वित्तीय वर्ष के लिए राज्य सरकार की अनुमानित कमाई और खर्च को बताता है। यह दस्तावेज वर्तमान वित्तीय वर्ष के संशोधित अनुमानों के साथ-साथ पिछले वित्तीय वर्ष के दौरान मिली वास्तविक प्राप्तियों और खर्च का विवरण देता है।
  2. अनुदान की मांग - संविधान के आर्टिकल 203 के मुताबिक राज्य की संचित निधि (कंसोलिडेटेड फंड) से होने वाले खर्च के अनुमानों पर विधानसभा में मतदान किया जाता है। अनुदान की मांग रूप में इन खर्चों का विवरण विधानसभा (विधायिका) के सामने रखा जाता है। आमतौर पर अनुदान की एक मांग मंत्रालय या डिपार्टमेंट के जरिए की जाती है। हालांकि, बड़े मंत्रालयों या विभागों के केस में, एक से अधिक मांगें भी भेजी जा सकती हैं। अनुदान की हर मांग 'मतदान' और 'प्रभारित' और 'राजस्व' और 'पूंजीगत' लेखा जैसी कैटेगरी में बंटी होती है।आम तौर पर, 'अनुदान की मांग' से जुड़े 2 प्रमुख दस्तावेज होते हैं - एक सारांश और एक विस्तृत रूप में। सारांश दस्तावेज में, हर मंत्रालय/विभाग का कुल खर्च वोटेड और चार्जर्ड में बंटा हुआ होता है। विस्तार से दिए गए दस्तावेज में खर्च का लेखाजोखा कुछ अन्य शीर्षकों में भी बंटा होता है।
  3. फाइनेंस बिल: यह राज्य के टैक्स रेगुलेशन (विनियमन) में बदलाव के संबंध में सरकार के प्रस्तावों का दस्तावेज कहलाता है। इसके लिए विधानसभा द्वारा मतदान किया जाता है, और इन तमाम प्रस्तावों को लागू कराने के लिए इसका पारित होना बेहद जरूरी होता है। फाइनेंस बिल एक धन विधेयक है और बजट प्रक्रिया के फाइनेंस पेश करना बेहद आवश्यक है। यह भारत के संविधान के आर्टिकल 198, 199 और 207 में अनिवार्य कहा गया है।
  4. विनियोग विधेयक (एप्रोप्रिएशन बिल): यह मतदान के लिए विधानसभा के सामने पेश किया जाने वाला वो दस्तावेज है, जो राज्य सरकारों को संचित निधि से पैसा खर्च करने के लिए कानूनी अधिकार देता है। विनियोग विधेयक भारत के संविधान के आर्टिकल 204 के चलते पेश किया जाता है। वहीं आर्टिकल 205 और 206 कहता है कि राज्य विधानसभा, विनियोग विधेयक को पारित किए बिना संचित निधि से कोई पैसा खर्च नहीं कर सकती है।
  5. अनुपूरक अनुदान – कई बार राज्य सरकारों को स्वीकृत सालाना बजट से ज्यादा पैसे खर्च करने की जरूरत पड़ती है। ऐसे मामलों में, संविधान के आर्टिकल 205 राज्य सरकार को 'अनुदान की मांग' के रूप में राज्य विधानसभा में अतिरिक्त खर्च का प्रस्ताव पेश करने की अनुमति देता है। इस प्रस्ताव को 'अनुपूरक अनुदान' कहा जाता है। किसी राज्य के लिए अनुपूरक अनुदान का प्रस्ताव पेश करना अनिवार्य नहीं है। राज्य उन्हें तब पेश करते हैं, जब वे बजट में स्वीकृत राशि से अधिक खर्च करने की जरूरत महसूस करते हैं। एक राज्य एक वित्तीय वर्ष में अधिकतम तीन अनुपूरक अनुदान प्रस्तुत कर सकता है।

ये पांच दस्तावेज संवैधानिक रूप से बेहद जरूरी हैं। बजट की प्रकृति के कारण, राज्य सरकारें कई अन्य दस्तावेज भी प्रस्तुत करती हैं, जो बजट की व्याख्या करने में मददगार साबित होते हैं। इसके अलावा बजट की स्पेशल डिटेल्स को हाइलाइट करती है। 

  • बजट स्पीच: राज्य विधानमंडल या विधान सभा में बजट पेश करते समय वित्त मंत्री द्वारा दिए गए भाषण का एक लिखित रूप होता है।
  • बजट सारांश: इसमें बजट की मुख्य बातें लिखी होती हैं। कई बार इसे 'बजट एक नजर में' या 'बजट संक्षेप में'.
  • बजट दस्तावेज की प्रमुख बातें: अन्य सभी बजट दस्तावेजों का एक संक्षिप्त परिचय प्रदान करता है, और बताता है कि उनमें क्या जानकारी है।
  • बजट प्राप्तियां: सरकार अलग-अलग स्रोतों से धन जुटाने का इरादा/उम्मीद कैसे करती है, इसकी विस्तार से जानकारी प्रदान करती है। यह संबंधित स्रोतों के साथ अनुमानित राशि की जानकारी देता है।
  • बजट खर्च: यह दस्तावेज साल के दौरान सरकार करने वाले सभी खर्च के बारे में विस्तार से जानकारी देता है। यह विभिन्न मंत्रालयों/विभागों के मुताबिक राशि और आगे का ब्रेकअप की जानकारी देता है।
  • खर्च का प्रोफाइल: ये सभी मंत्रालयों के कुल खर्च का एक सारांश है। यह बजट को अलग अलग कैटेगरी के अनुसार खर्च के रूप में पेश करता है। इसके अलावा महिलाओं, बच्चों, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए चलाई जा रही योजनाओं के लिए आवंटित धनराशि की जानकारी देता है।
  • इकोनॉमिक सर्वे: - यह वित्त मंत्रालय द्वारा तैयार एक ऐसा दस्तावेज है जो चालू वर्ष की अर्थव्यवस्था की स्थिति की जानकारी देता है। इस पूरे दस्तावेज को आम तौर पर 2 हिस्सों में बांटा जाता है, जहां पहला भाग अर्थव्यवस्था और सामान्य रूप से देश का विश्लेषणात्मक/गुणात्मक जानकारी देता है। दूसरे भाग में सभी प्रमुख क्षेत्रों के सांख्यिकीय (स्टैटिस्टिकल) डेटा के साथ-साथ अन्य महत्वपूर्ण आर्थिक जानकारी देता है।
  • मेमोरेंडम: फाइनेंस बिल का यह सप्लीमेंट्री दस्तावेज, फाइनेंस बिल के अलग अलग कानूनी प्रावधानों की व्याख्या करता है।
  • फिस्कल रेस्पॉन्सिबिलिटी एंड बजट मैनेजमेंट (एफआरबीएम) एक्ट: अधिनियम 2003 में केंद्र सरकार ने पारित किया था, और राज्य सरकारों ने भी लोन मैनेजमेंट की नजर से अपने स्वयं के FRBM एक्ट को अधिनियमित किया था। अधिनियम में दस्तावेजों के प्रकाशन की आवश्यकता है। दस्तावेजों का असल शीर्षक राज्यों में अलग हो सकता है। इनमें सबसे आम शीर्षक हैं - मैक्रो-इकोनॉमिक फ्रेमवर्क स्टेटमेंट, और मध्यम-अवधि की राजकोषीय नीति सह वित्तीय नीति रणनीति स्टेटमेंट।
  • जेंडर बजट स्टेटमेंट: ये दस्तावेज जेंडर बजट के तहत बनाई जाने वाली स्कीम्स और प्रोग्राम से संबंधित है। इसमें आम तौर पर उन स्कीम्स का विवरण है जिनमें महिलाओं के लिए 100% आवंटन या कम से कम 30% आवंटन होता है।
  • चाइल्ड बजट स्टेटमेंट: ये दस्तावेज बजट में बाल कल्याण के लिए बनाई और लागू की जाने वाली स्कीम्स की जानकारी देता है। इसमें आम तौर पर उन स्कीम्स का विवरण होता है जिनमें बच्चों के लिए 100% आवंटन या कम से कम 30% आवंटन होता है।
  • आउटकम/परफॉर्मेंस बजट स्टेटमेंट: ये किसी विशेष नीति या विभाग के लिए तय लक्ष्यों की जानकारी देता है. इसके साथ-साथ उन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए होने वाली परफॉर्मेंस का मूल्यांकन भी करता है। इन लक्ष्यों को मात्रात्मक (क्वांटिटेटिव) रूप से परिभाषित किया जाता है और आम तौर पर इसके लिए समय अवधि भी दी जाती है। आउटकम बजट स्टेटमेंट हर नीति/विभाग के लिए लक्ष्यों की जानकारी देता है, साथ ही पिछले वर्ष के लक्ष्यों को हासिल करने में राज्य के प्रदर्शन को भी दिखलाता है।
  • अनुसूचित जातियों के कल्याण के लिए आवंटन पर स्टेटमेंट: अनुसूचित जातियों के विकास के लिए कई राज्य सरकारें ऐसी योजनाएं बनाती हैं जिनका उद्देश्य खासकर अनुसूचित जातियों के कल्याण के लिए होता है। यह दस्तावेज उन योजनाओं के लिए आवंटन की जानकारी देता है, जो अनुसूचित जाति के कल्याण के लिए पूर्ण या आंशिक रूप से बनाई गई हैं।
  • अनुसूचित जनजातियों के कल्याण के लिए आवंटन पर स्टेटमेंट: 'अनुसूचित जाति' की तरह, अनुसूचित जनजाति भी सामान्य आबादी की तुलना में विकास में पिछड़ी हुई हैं। हालातों को सुधारने के लिए कई राज्य सरकारें अनुसूचित जनजाति के लिए विशेष योजनाएं बनाती हैं। यह दस्तावेज उन योजनाओं के लिए आवंटन की जानकारी देता है। इसमें वो सभी अनुसूचित जनजातियों के कल्याण के लिए बनाई गईं पूर्ण या आंशिक योजनाएं शामिल होती हैं।
  • कृषि बजट स्टेटमेंट: यह दस्तावेज खासकर कृषि के लिए बनाई गई नीतियों/योजनाओं की जानकारी देता है। ये दस्तावेज नीतियों के साथ-साथ संबंधित आवंटन का विवरण देता है।
  • जेंडर बजटिंग से संबंधित जानकारियों को पढ़ने के लिए, कृपया चैप्टर 8 देखें
  • चाइल्ड बजटिंग से संबंधित जानकारियों को पढ़ने के लिए, कृपया चैप्टर 8 देखें
  • न्यूट्रिशन बजट स्टेटमेंट: कई राज्यों ने पोषण स्तर में सुधार लाने के लक्ष्य को प्राथमिकता दी है। ऐसे राज्य पोषण में सुधार के मकसद से खास नीतियां बनाते हैं। यह दस्तावेज ऐसी नीतियों और संबंधित आवंटन का विवरण देता है।
  • सिटिजन बजट: बजट आम लोगों की बेहतरी के लिए बजट बनाए जाते हैं, परंपरागत रूप से बजट तैयार करने में उनकी कोई भूमिका नहीं होती है। इसमें बदलाव के लिए कुछ राज्यों ने पहल की है, जहां नागरिक बजट से जुड़ी अपनी प्रतिक्रिया या मांग कर सकते हैं। इसे या तो फिजिकली किया जा सकता है, जैसे कि नागरिकों के साथ सरकारी अधिकारियों की सार्वजनिक बैठक, या ऑनलाइन जैसे अन्य माध्यमों से प्रतिक्रियाओं के जरिए। आम लोगों की राय लेकर तैयार किया गया बजट नागरिक बजट कहलाता है। यह दस्तावेज बताता है कि सरकार ने आम नागरिकों के लिए कौन से कदम उठाए हैं। इसके साथ ही कितनी मांग और फीडबैक वास्तविक बजट में मानी गई हैं।

राज्य सरकारों को अपना बजट बनाने के संबंध में आजादी है, इसलिए सभी राज्य सरकारें ऊपर लिखे हुए सभी दस्तावेजों को बजट बनाने के दौरान पेश नहीं करते हैं। हकीकत में राज्यों के दस्तावेजों में भिन्नता वहां दिखाई देती है, जो विशेषकर जो खास नीति/समूह के उद्देश्य से बनाए जाते हैं, जैसे जेंडर बजट स्टेटमेंट, बाल बजट स्टेटमेंट आदि। ये अलग अलग राज्य सरकारों की पॉलिसी प्राथमिकता को समझने के लिए इस्तेमाल होता है। 

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