सरकारी बजट प्रक्रियाएं जटिल होती हैं, जो आमतौर पर एक से अधिक वित्तीय वर्ष में चलती है और इसमें कई चरण शामिल होते हैं. इस सेक्शन में बजटीय प्रक्रिया के चार प्रमुख चरणों की जानकारी दी गई है.
चूंकि भारत एक संघीय (फेडरल) देश है, और इसमें तीन-स्तरीय शासन व्यवस्था बनाई गई है - केंद्र, राज्य और स्थानीय स्तर. इन तीनों की अपनी अलग बजटीय प्रक्रियाएं होती हैं. तीनों, हालांकि, एक ही वित्तीय वर्ष के हिसाब से बजट बनाते हैं, जो अप्रैल से मार्च तक चलता है.
बहुस्तरीय बजटीय प्रक्रिया और तीन-स्तरीय शासन संरचना को ध्यान में रखते हुए इस चैप्टर को तीन हिस्सों में बांटा गया है.
एक बजट में आम तौर पर पैसा कहां से आता है और कहां जाता है, इसका विवरण होता है. हालांकि, सरकारी बजट अधिक जटिल और विस्तृत दस्तावेज होता है. बजट के जरिए पता चलता है कि सरकार अलग अलग सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों से निपटने के लिए कैसी योजनाएं बना रही है. साथ ही वित्तीय वर्ष के अंत तक इन योजनाओं से क्या परिणाम हासिल होंगे और कई अन्य चीजें. यह देखते हुए कि बजट को अनेक उद्देश्यों को पूरा करना है इसलिए पूरी बजटीय प्रक्रिया काफी लंबी है. मोटे तौर पर, सरकार की बजट संबंधी प्रक्रियाओं को चार अलग-अलग चरणों में बांटा जा सकता है.
1. सूत्रीकरण या तैयारी
2. कानून या विधायी मंजूरी
3. लागू करना और क्रियान्वयन
4. ऑडिट या समीक्षा
इस खंड में सभी चार चरणों पर विस्तार से चर्चा की गई है.
बजट बनाने के नियम
बजट प्रक्रिया का पहला चरण पूरी तरह से सरकार की कार्यकारी शाखा हिस्सा होता है. इस प्रक्रिया में कई प्रमुख तत्व शामिल होते हैं. इस स्तर पर बजट के पैरामीटर सेट किए जाते हैं और इस बात का फैसला होता है कि कौन कौन से कार्यक्रमों और योजनाओं के तहत रेवेन्यु का बंटवारा किस आधार पर होगा.
इस प्रक्रिया का परिणाम प्रस्तावित बजट होता है, जो आगामी वित्तीय वर्ष के लिए सरकार की योजना को बताता है. इसके साथ ही इससे सरकार की प्राथमिकताओं और प्रतिबद्धताओं का विवरण भी मिलता है.
सालाना बजट बनाने की ये प्रक्रिया आमतौर पर बंद दरवाजे के पीछे होती है लेकिन कभी कभी, सरकार अलग-अलग हितधारक जैसे एक्सपर्ट्स, व्यापारी, ट्रेड ग्रुप्स, लेबर यूनियन, नागरिक समाज संगठन आदि की भी सलाह ली जाती है.
बजट संबंधी कानून
इस चरण में बजट को संसद या राज्य विधानसभा में वित्त मंत्री द्वारा पेश किया जाता है.
बजट को पेश करना सरकार की प्राथमिकताओं के साथ-साथ उसके नीतिगत फैसलों को दिखलाती है. दो अलग-अलग मदों के लिए विधायिका द्वारा मंजूरी की जरूरत होती है.
1. फाइनेंस बिल
2. विनियोग बिल/अप्रोप्रिएशन बिल
फाइनेंस बिल सरकार को संसाधन जुटाने की कानूनी मंजूरी देता है, विशेषकर टैक्स के जरिए. जबकि दूसरी ओर विनियोग बिल बजट में बताए गए और विधायिका द्वारा तय खर्च के लिए सरकार को कानूनी अधिकार देता है. संविधान के अनुसार, 'भारत की संचित निधि' से एक भी रुपए बिना विधायिका से विनियोग विधेयक पास कराए नहीं खर्च किया जा सकता है.
बजट लागू कराना
इस चरण का तात्पर्य सरकार को बजट प्रस्तावों को लागू कराने से है. इसका मतलब बजट में प्लानिंग के हिसाब से संसाधन जुटाना, साथ ही बजट के मुताबिक खर्च करना.
बजट में दिए गए आंकड़े एक अनुमान मात्र होते हैं और वास्तव में होने वाले कलेक्शन अलग होते हैं. ऐसे हालातों में, बजट इम्प्लीमेंटेशन काम का बड़ा हिस्सा पूरे साल प्राप्तियों और खर्च को बैलेंस करना भी होता है.
बजट में खर्च की बात करें तो, इनमें प्रमुख मुद्दे ये हैं कि क्या वास्तविक खर्च बजट में दिए गए आंकड़े के अनुरूप है? क्या खर्च की प्राथमिकताओं में बदलाव विशिष्ट क्षेत्रों में लागू किया जा रहा है? और क्या बजट लागू कराने में समस्याएं आ रही है, जैसे कि निर्माण-बकाया भुगतान आदि में.
ऑडिट
पब्लिक फाइनेंशियल मैनेजमेंट और बजट प्रक्रिया पर नियंत्रण के लिए एक स्वतंत्र निकाय की जरूरत होती है, ऐसा निकाय जो कार्यपालिका से आजाद हो, सरकार के बजट का ऑडिट करे और एक सालाना ऑडिट रिपोर्ट जारी करे. इन जिम्मेदारियों से निहित संस्थान को सुप्रीम ऑडिट इंस्टिट्यूशन या ऑडिटर ऑफिस और नियंत्रक जनरल ऑफ इंडिया के नाम से जाना जाता है.
ऑडिट के पीछे का मकसद ये तय करना है कि सरकार कमाई और खर्च से संबंधित सभी प्रक्रियाओं को कंट्रोल करने वाले नियम-कानून का पालन करे. ये रिपोर्ट्स सरकार को जवाबदेह ठहराने में मदद करती हैं और बजट प्रक्रियाओं में सुधार करने में मदद करती हैं.
केंद्रीय बजट हर साल 1 फरवरी को संसद में पेश किया जाता है लेकिन पेश करने से पहले ये कई विस्तृत प्रक्रियाओं से गुजरता है जिसमें बजट तैयार करने से लेकर, लागू करने और ऑडिट करना तक शामिल है. इस सेक्शन में बजट में शामिल प्रक्रियाओं, संस्थानों और बजट बनाने में शामिल तत्वों की जानकारी दी गई है.
बजट बनाने की प्रक्रिया
बजट तैयार करने की प्रक्रिया हर साल अगस्त महीने के आखिरी हफ्ते या सितंबर महीने के पहले 15 दिनों के अंदर शुरू हो जाती है. बजट प्रक्रिया शुरू करने के लिए वित्त मंत्रालय के अंतर्गत आर्थिक मामलों के विभाग का बजट डिविजन, अगस्त/सितंबर में केंद्र सरकार के सभी मंत्रालयों/विभागों/एजेंसियों/संस्थानों को सालाना बजट सर्कुलर जारी करता है. बजट सर्कुलर में मंत्रालयों/विभागों/एजेंसियों के लिए उनके द्वारा तैयार किए जाने वाले बजट अनुमानों के विवरण की जानकारी और सामग्री पर विस्तार से दिए दिशानिर्देश शामिल होते हैं.
वित्त मंत्रालय का व्यय विभाग निम्नलिखित के तहत अक्टूबर में अनुमानित खर्च की मांग करता है:
a. पिछले वित्त वर्ष का वास्तविक खर्च
b. चालू वित्त वर्ष का वास्तविक बजट अनुमान
c. चालू वित्त वर्ष के लिए संशोधित अनुमान
d. अगले वित्त वर्ष के लिए अनुमानित बजट
इसके बाद वित्त मंत्रालय और प्रमुख स्टेकहोल्डर्स (व्यय मंत्रालयों/विभागों) जैसे स्वास्थ्य मंत्रालय, शिक्षा मंत्रालय, ग्रामीण विकास मंत्रालय और पंचायती राज आदि के बीच कई राउंड द्विपक्षीय चर्चाएं होती है.
नवंबर/दिसंबर में, वित्त मंत्री का अर्थशास्त्रियों, किसानों, छोटे उद्योगों, एक्सपोर्ट्स, उद्योगपतियों, ट्रेड यूनियनों, सोशल सेक्टर एक्सपर्ट से चर्चाओं का दौर शुरू होता है. इन चर्चाओं का उद्देश्य इनपुट के साथ-साथ व्यय पक्ष और टैक्स मुद्दों पर उनकी उम्मीदों और भावनाओं को जानना है.
बजट का पहला हिस्सा बजट खर्च को अंतिम रूप देना है, और ये आमतौर पर हर साल जनवरी को तय किया जाता है.
कई बार जनवरी में, वित्त मंत्री बजट डिविजन से पहली "ब्लू शीट" की मांग करती है. ब्लू शीट दरअसल व्यापक आंकड़ों के लिए बनाई गई शीट है, इसमें कितना खर्च जरूरी है, कितने रेवेन्यु के आने की उम्मीद है और घाटे का स्वरूप कैसा है?
ये कई ब्लू शीट्स में से पहली ब्लू शीट है. हर ब्लू शीट पर बजट समूह चर्चा करता है और जिस दिन उस पर चर्चा समाप्त होती है उसे नष्ट कर दिया जाता है. इन शीटों का कोई रिकॉर्ड नहीं रखा जाता है.
बजट ग्रुप की कोर टीम में पांच सदस्य होते हैं: इसमें वित्त मंत्री, वित्त सचिव, राजस्व सचिव, व्यय सचिव और चीफ इकोनॉमिक एडवाइजर शामिल होते हैं. उनकी मदद के लिए अतिरिक्त सचिव - बजट और दो टैक्स बोर्ड के अध्यक्ष, केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड और केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड हैं. यह ग्रुप उन टैक्स बदलावों पर चर्चा करता है, जो किए जा सकते हैं. वित्त मंत्री जब व्यापक संख्या पर निर्णय ले लेते हैं तो उसके बाद, पहले दौर के परामर्श के लिए प्रधान मंत्री के पास जाते हैं. इन पर प्रधानमंत्री कुछ व्यापाक सुझाव दे सकते हैं, जिन्हें दूसरे और अधिक विस्तार से चर्चा किए जाने वाले दौर से पहले शामिल किया जाता है. साथ ही नई योजनाओं पर भी काफी सावधानीपूर्वक विचार-चर्चा की जाती है.
तीसरे दौर की चर्चा टैक्स और उनके प्रस्तावों पर होती है और उसके बाद जरूरत पड़ने पर असल भाषण पर अंतिम दौर की चर्चा होती है. ये सभी चर्चाएं हर साल जनवरी के पहले 15 दिनों के अंदर ही हो जाती हैं.
भारत का केंद्रीय बजट असाधारण गोपनीयता के साथ तैयार किया जाता है. ये बजट वित्त मंत्रालय की इमारत में तैयार होता है और इसके लिए अधिक सुरक्षा व्यवस्था की जाती है.
वित्त मंत्रालय की इमारत में प्रवेश होने वाली हर एंट्री को पास की जरूरत होती है. इमारत में एंट्री और बाहर निकलने को रिकॉर्ड किया जाता है. जब बजट दस्तावेज छपने शुरू हो जाते हैं, सिर्फ बजट का कोर ग्रुप ही इमारत से बाहर निकल सकता है. गोपनीयता सभी बजट दस्तावेजों पर भी लागू होती है और बजट पर काम करने वाले कर्मचारियों के अलावा बाहर के किसी भी शख्स को दस्तावेजों और उसमें लिखी संख्याओं की जानकारी नहीं पहुंचने दी जाती है.
बजट से जुड़े कानून
केंद्र सरकार केवल लोकसभा (निचला सदन) और बाद में राज्यसभा (ऊपरी सदन) द्वारा विनियोग बिल और फाइनेंस बिल को मंजूरी मिलने के बाद ही राजस्व बढ़ा सकती है और खर्च कर सकती है.
संसद में बजट का पेश होना
बजट पेश करने की शुरुआत वित्त मंत्री के बजट भाषण से होती है. बजट भाषण को दो भागों में बांटा जाता है. पार्ट ए में पिछले और चालू वित्तीय वर्ष की तुलना में अर्थव्यवस्था की एक तस्वीर पेश करता है. यह अगले वित्तीय वर्ष के लिए अलग-अलग खर्च आइटम के बजट अनुमान को भी पेश करता है.
पार्टी बी में आगामी वित्त वर्ष के लिए टैक्स का प्रस्ताव पेश किया जाता है. लोकसभा में वित्त मंत्री के भाषण के आखिर में, बजट दस्तावेज संसद सदस्यों के लिए (ऑनलाइन और हार्डकॉपी दोनों) उपलब्ध कराए जाते हैं. इसके साथ ही वित्त मंत्रालय के नामित वेब पोर्टल पर अपलोड किए जाते हैं. राज्य सभा में, वित्त राज्य मंत्री बजट दस्तावेजों को रखते हैं.
आम चर्चा
बजट पेश होने के बाद, लोकसभा और राज्य सभा दोनों जगह आम चर्चा की जाती है. इस स्तर पर बजट और सरकार के प्रस्तावों पर होने वाली सामान्य चर्चा है. इस चर्चा के दौरान बजट विवरण, संसाधनों के वितरण, टैक्स की नीतियां, साथ ही सरप्लस या घाटे पर बहस नहीं होती है. यह सामान्य चर्चा राजकोषीय नीति के मुद्दों तक ही सीमित है, जिसमें सरकार और उसके विभागों द्वारा प्रशासन की समीक्षा और आलोचना शामिल होती है.
इस प्रकार, संसद सदस्यों के पास टैक्सपेयर्स की शिकायतों को सदन के सामने रखने का अवसर होता है. चर्चा के आखिर में वित्त मंत्री सदन को जवाब देते हैं. इस स्तर पर मांगों पर कोई मतदान नहीं होता है.
स्टैंडिंग कमिटी से विभागीय रिपोर्ट्स
अभी विभाग से संबंधित 24 स्टैंडिंग कमेटियां हैं, जो भारत सरकार के सभी मंत्रालयों/विभागों के कार्यों की देखरेख करती हैं. स्टैंडिंग कमेटियां का कार्य मंत्रालयों/विभागों को उनके सुपरविजन में फंड्स के आवंटन की जांच करना है. ये कमेटियां निम्नलिखित की जांच करती हैं: (i) मंत्रालय के तहत विभिन्न कार्यक्रमों और योजनाओं के लिए आवंटित राशि, और (ii) मंत्रालय को आवंटित धन के उपयोग का तरीका.
मंत्रालय के अधिकारियों को सवालों का जवाब देने और अनुदान मांगों की जांच के संबंध में अधिक जानकारी देने के लिए समितियों के समक्ष पेश होना जरूरी है. मंत्रालय के खर्च की जांच करते वक्त, कमेटियां एक्सपर्ट्स और संगठनों से सलाह या विचार ले सकती हैं. इन सलाहों के आधार पर, कमेटियां अपनी रिपोर्ट संसद को पेश करती हैं. समितियों की सिफारिशें सांसदों के लिए मंत्रालयों में प्रस्तावित खर्च के मायने समझने और ऐसे खर्च को मंजूरी देने से पहले एक बहस को सक्षम बनाने के लिए बहुत जरूरी हैं.
अनुदान मांगों पर विस्तार से चर्चा
आमतौर पर, लोकसभा 4 या 5 अनुदान मांगों पर विस्तार से चर्चा करने का फैसला करती है. चर्चा के लिए चुने गए मंत्रालय हर साल अलग-अलग होते हैं और इनका चयन लोकसभा की बिजनेस एडवाइजरी कमेटी करती है. इन मांगों पर चर्चा के बाद वोटिंग होती है. वो मांगें जिन पर अंतिम दिन तक चर्चा और वोटिंग नहीं हुई है, उन्हें 'गिलोटिन्ड' किया जाता है. इसका मतलब उन्हें एक साथ वोट दिया जाता है. 2004-05, 2013-14 और 2018-19 में अनुदान की सभी मांगों को गिलोटिनेट कर दिया गया था, इसका मतलब बिना चर्चा के पारित वो पारित कर दी गईं. अनुदान मांगों पर वोटिंग के दौरान, सांसद 'कट मोशन' के जरिए अपनी अस्वीकृति व्यक्त कर सकते हैं. अगर कोई कटौती प्रस्ताव पारित होता है, तो यह सरकार में विश्वास की कमी का संकेत है और मंत्रिमंडल के इस्तीफा देने की उम्मीद है.
सांसद संबंधित मंत्रालय के लिए अनुदान राशि कम करने के लिए कटौती का प्रस्ताव पेश कर सकते हैं: (i) 1 रुपए से उस मंत्रालय की नीतियों पर असहमति दिखाने के लिए; (ii) एक विशिष्ट राशि (इकोनॉमी कट); या (iii) 100 रुपए की टोकन राशि से शिकायत दर्ज कर सकते हैं.
विनियोग विधेयक का पारित होना (मनी बिल)
अनुदान मांगों के पारित होने के बाद, उन्हें विनियोग विधेयक में शामिल किया जाता है. यह विधेयक सरकार को भारत की संचित निधि से धन खर्च करने का कानूनी अधिकार देता है. इस फंड में सरकार की सभी कमाई और उधार, संसद द्वारा पारित राशि, और संचित निधि पर प्रभारित खर्च को पूरा करने के लिए जरूरी राशि, मतलब खर्च को पूरा करने के लिए संसद से मतदान की जरूरत नहीं होती है.
वो खर्च जिनके लिए मतदान की जरूरत नहीं है:
1. राष्ट्रपति के वेतन और भत्ते और उनके ऑफिस से संबंधित खर्च
2. राज्य सभा के अध्यक्ष और लोकसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के वेतन और भत्ते
3. भारत सरकार के लोन
4. सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीशों की सैलरी और पेंशन
5. भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक की सैलरी, भत्ते और पेंशन
6. किसी कोर्ट/मध्यस्थ न्यायाधिकरण के किसी फैसले को संतुष्ट करने के लिए जरूरी रकम
7. संविधान या संसद द्वारा कानून द्वारा घोषित कोई दूसरे खर्च, जिनको उठाया जाना है
ऐसे सदन द्वारा मतदान किए जाने पर उन मांगों को कानून प्रभाव मिलता है. यहां, यह भी स्पष्ट हो जाता है कि संसद सार्वजनिक खर्च को कैसे कंट्रोल करती है.
फाइनेंस बिल का पारित होना
इस बिल को बजट के साथ पेश किया जाता है और इसमें आगामी वित्त वर्ष के लिए सरकार के आर्थिक प्रस्ताव शामिल होते हैं. फाइनेंस बिल को आमतौर पर धन विधेयक के रूप में पेश किया जाता है. संविधान के मुताबिक फाइनेंस बिल वो होता है जिसमें केवल टैक्स से संबंधित, सरकार द्वारा लिए जाने वाले उधार, या भारत की संचित निधि के धन से संबंधित प्रावधान शामिल होते हैं. एक फाइनेंस बिल को केवल लोकसभा के अनुमोदन की जरूरत होती है, जिसके बाद राज्यसभा केवल अपनी सिफारिशें दे सकती है.
यह ध्यान देने योग्य है कि विनियोग अधिनियम (अप्रोप्रिएशन एक्ट) केवल सरकार को समेकित निधि (कंसोलिडेटेड फंड) से पैसा निकालने के लिए अधिकार देता है, जबकि फाइनेंस बिल सरकार को जरूरी पैसा उगाही करने के लिए सक्षम बनाता है. जैसा कि संविधान में कहा गया है कि "कानूनी अथॉरिटी के अलावा कोई टैक्स नहीं लगाया जाएगा और जमा नहीं किया जाएगा", एक फाइनेंस बिल संसद के निचले सदन के पटल पर रखा जाता है. बिल के पारित होने पर, एक एक्ट बन जाता है, जो सरकार को टैक्सेशन या बजट में शामिल प्रावधानों के जरिए से जरूरी पैसा जमा करने के लिए ताकत देता है.
यह बिल नए टैक्स लगाने के लिए सरकार के प्रस्तावों को आखिरी रूप देता है. यह मौजूदा टैक्स स्ट्रक्चर में हुए बदलाव को भी शामिल करता है या संसद द्वारा तय की गई अवधि से अलग मौजूदा टैक्स स्ट्रक्चर बने रहने के संकेत देता है. विनियोग विधेयक और फाइनेंस बिल पारित होने पर बजट को पारित कहा जाता है. लोकसभा द्वारा बजट पारित होने के बाद, यह राज्यसभा में जाता है. राज्य सभा को बजट में संशोधन या अस्वीकार करने की ताकत हासिल नहीं है. राज्यसभा 14 दिनों की अवधि के अंदर ही केवल लोकसभा के लिए सिफारिश कर सकती है. लोकसभा, राज्य सभा की सिफारिशों को स्वीकार या अस्वीकार दोनों कर सकती है. जब दोनों सदनों में बजट पारित हो जाता है, तो यह राष्ट्रपति के पास सहमति के लिए जाता है, जिसके बाद इसे अंतिम माना जाता है और भारत के राजपत्र में प्रकाशित किया जाता है.
बजट का कार्यान्वयन
बजट कार्यान्वयन की जिम्मेदारी सरकार की होती है. बजट के कार्यान्वयन के तीन पहलू होते हैं: (A) अलग-अलग प्रशासनिक मंत्रालयों और विभागों को अनुदान का बंटवारा, (B) रेवेन्यु का जमा करना, और (C) जमा हुए रेवेन्यु का कस्टडी में रखना.
अनुदान का बंटवारा
वित्त मंत्रालय अपने दायरे में आने वाले अलग-अलग कंट्रोलिंग ऑफिसर्स को स्वीकृत धनराशि का बंटवारा करता है. एक कंट्रोलिंग ऑफिसर के दो कर्तव्य होते हैं.
यह देखना कि क्या स्वीकृत बजट के अनुसार काम हो रहा है.
ii. दूसरा यह देखना कि विभिन्न मंत्रालय और विभाग अपनी स्वीकृत सीमा से अधिक खर्च नहीं करते हैं
इस प्रकार, दोनों तरफ से सभी सार्वजनिक खर्च पर नियंत्रण होता है: पहला प्रशासनिक/डिस्ट्रिब्यूशन और दूसरा भुगतान की ओर से भी.
रेवेन्यु का कलेक्शन
इसमें दो तरह की प्रक्रियाएं शामिल हैं
i. रेवेन्यु का आकलन
ii. रेवेन्यु का जमा होना
केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड, केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड, और जीएसटी प्रशासनिक निकाय (जीएसटी परिषद) रेवेन्यु संग्रह का विवाद, निर्णय का मूल्यांकन और असेसमेंट का काम करते हैं. इस प्रकार, रेवेन्यु का आकलन करने और जमा करने की प्रशासनिक जिम्मेदारी इन्हीं बोर्डों के पास होती है.
जमा धन की उचित कस्टडी
विधायिका के पास अधिकार केवल विनियोगों (एप्रोप्रिएशन) को मंजूरी देने तक की सीमित नहीं है, इसके बजाए कि जिन उद्देश्यों के लिए विनियोगों को मंजूरी मिली है, वो उसी तय सीमा के तहत इस्तेमाल भी किए जा रहे हैं. भारत में, संसद निम्नलिखित संस्थानों के जरिए सार्वजनिक खर्च पर नियंत्रण रखती है.
1. संसद और विधानसभाओं द्वारा सीधा नियंत्रण
2. संसदीय या विधायी समितियों द्वारा नियंत्रण
- प्राक्कलन समिति (एस्टिमेट कमेटी)
- लोक लेखा समिति
- सरकारी उपक्रमों (पब्लिक अंडरटेकिंग) संबंधी समिति
3. भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) के नियंत्रण में लेखा परीक्षा विभाग
इन समितियों का गठन आनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर किया जाता है. ये कमेटियां संसद के दोनों सदनों का प्रतिनिधित्व करते हैं.
iv. प्राक्कलन समिति (एस्टिमेट कमेटी)
प्राक्कलन समिति संसदीय समिति होती है. इस समिति का काम केंद्र सरकार के बजट अनुमानों की जांच करना है. इस समिति में हर साल लोकसभा द्वारा 30 सदस्य चुने जाते हैं. इससे पहले यह समिति अलग अलग मंत्रालयों/विभागों द्वारा खर्च के प्रस्तावित अनुमानों की जांच का काम करती थी.
साल 1993 से, विभागों से संबंधित स्थायी समितियों ने इस काम को अपने हाथ में ले लिया है. प्राक्कलन समिति को कुछ सरकारी संगठनों के कामकाज की जांच करने के लिए छोड़ दिया है.
अनुमान समिति के मुख्य कार्यों में शामिल हैं
a. ये रिपोर्ट करना कि कौन से सुझावों से अर्थव्यवस्थाओं, संगठन में सुधार, दक्षता या प्रशासनिक सुधार हो सकता है. ये वो सुझाव होते हैं, जो नीतियों के अनुरूप होते हैं.
b. प्रशासन में सुधार और खर्च पर लगाम लगाने के लिए वैकल्पिक नीतियों को लेकर सुझाव देना;
c. यह जांचने की जिम्मेदारी कि क्या अनुमानों में तय नीति के मुताबिक पैसों का सही तरीके से निर्धारण किया गया है.
d. संसद में प्रस्तुत होने वाले सुझावों को देना.
ये समिति पूरे वित्तीय वर्ष में समय-समय पर अनुमानों की जांच करना जारी रख सकती है और सदन में जांच के रूप में रिपोर्ट कर सकती है. किसी एक वित्तीय वर्ष के पूरे अनुमानों की जांच करने के लिए समिति बाध्य नहीं है. अनुदान की मांगों पर अंतिम रूप से मतदान किया जा सकता है, भले ही समिति ने कोई रिपोर्ट दी हो या नहीं.
लोक लेखा समिति (पब्लिक अकाउंट्स कमेटी)
लोक लेखा समिति में 22 सदस्य होते हैं जिनमें 15 लोकसभा और 7 राज्यसभा से चुने जाते हैं. यह उन संसदीय समितियों में से एक है जो CAG की सालाना पब्लिक अकाउंट्स रिपोर्ट की जांच करती है, जिसे राष्ट्रपति भारत की संसद के समक्ष रखता है. सीएजी द्वारा प्रस्तुत तीन प्रकार की रिपोर्टें हैं::
a. विनियोग अकाउंट्स पर ऑडिट रिपोर्ट्स
b. फाइनेंस अकाउंट्स पर ऑडिट रिपोर्ट्स
c. सार्वजनिक उपक्रम पर ऑडिट रिपोर्ट्स
लोक लेखा कमेटी का काम सार्वजनिक खर्च की जांच करना है. उस सार्वजनिक खर्च की जांच न केवल तकनीकी अनियमितताओं को देखने के लिए कानूनी और औपचारिक दृष्टिकोण के साथ-साथ अर्थव्यवस्था और जरूरत के हिसाब से से भी की जाती है. इस कोशिश का मकसद बर्बादी, नुकसान, भ्रष्टाचार, फिजूलखर्ची, और अनावश्यक खर्च की जानकारी को सामने लाना है.
सरकारी उपक्रमों (पब्लिक अंडरटेकिंग) समिति
ये समिति भारतीय संविधान के तहत बनने वाली संसदीय की स्थायी समितियों में से एक है जिसे सार्वजनिक उपक्रमों पर संसदीय नियंत्रण का विस्तार करने के लिए पेश किया गया था. इस कमेटी में 22 सदस्य होते हैं. इनमें से 15 लोकसभा से चुने जाते हैं और 7 सदस्य राज्य सभा से चुने जाते हैं.
यह पब्लिक सेक्टर यूनिट (पीएसयू) के खातों की जांच करता है ताकि उनके बिजनेस की विश्वसनीयता, कार्यक्षमता और विश्वसनीयता की जांच की जा सके. यह पब्लिक सेक्टर यूनिट पर बनने वाली सीएजी की रिपोर्ट की जांच करता है. इन PSU के संबंध में लोकसभा अध्यक्ष द्वारा सौंपे गए कामों को करता है..
ऑडिट
बजट की पूरी प्रक्रिया में ऑडिट (लेखापरीक्षा) आखिरी चरण है लेकिन यह पूरे बजट प्रक्रिया का बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसके बड़े राजनीतिक मायने हैं. कैग भारत में ऑडिट का सबसे बड़ा संस्थान हैं, ये न केवल सरकार के खर्च बल्कि उसकी कमाई का भी ऑडिट करता है. उदाहरण के लिए, कैग इस बात की जांच करता है कि क्या टैक्स जमा करते समय सही प्रक्रियाओं और नियमों का पालन किया गया था? लेकिन इससे भी अलग, यह सरकारी नीतियों की कमाई का विश्लेषण भी कर सकता है.
बजट प्रक्रिया के इस आखिरी चरण में, केंद्र सरकार के अकाउंट्स के विभागीकरण से संबंधित मामलों को देखने वाले लेखा महानियंत्रक (CGA) को निम्नलिखित काम सौंपे जाते हैं:
केंद्र और राज्य सरकारों से संबंधित खातों के रूप का निर्धारण
अकाउंटिंग की प्रक्रियाओं को निर्धारित करना
केंद्रीय लेखा कार्यालयों (सेंट्रल अकाउंट ऑफिस) अकाउंटिंग के जरूरी मानकों के रखरखाव की देखरेख करना
भारत सरकार के मासिक और सालाना खातों का समेकन (कंसोलिडेशन);
संविधान के अनुच्छेद 283 के तहत सचित नियमों का प्रशासन
संचित निधि, आकस्मिकता निधि और भारत के पब्लिक अकाउंट की कस्टडी से जुड़े नियमों जो संविधान के अनुच्छेद 283 के अंतर्गत आते हैं, उन्हें लागू करना है.
CGA केंद्र सरकार के विनियोग अकाउंट्स और फाइनेंस अकाउंट्स खातों का एक संक्षिप्त रूप तैयार करता है. यह प्रक्रिया केवल CGA द्वारा अकाउंट्स तैयार करने तक ही खत्म नहीं हो जाती है. सटीकता और पूर्णता के लिए अकाउंट्स का वेरिफिकेशन जरूरी हो जाता है. इसलिए, CGA द्वारा तैयार किए गए अकाउंट्स का भारत के CAG द्वारा ऑडिट किया जाता है.
ऑडिट हो चुके अकाउंट CAG रिपोर्ट के साथ संसद के दोनों सदनों में पेश किए जाते हैं. CAG केंद्र और राज्य सरकारों के सभी खर्चों के ऑडिट और विधायिका के सामने रखने के लिए राष्ट्रपति या राज्यपाल के सामने ऑडिट रिपोर्ट पेश करनी होती है. CAG की रिपोर्ट एक प्रमाण पत्र जारी होने के बराबर है. CAG की टिप्पणियों में बजट में मतदान और प्रभारित खर्च के संबंध में आपत्तियों और अनियमितताओं का सार है.
केंद्रीय बजट की टाइमलाइन
तीन अलग-अलग सालाना बजट बनाने की प्रक्रिया, अधिनियमन, कार्यान्वयन और ऑडिट एक साथ होती है, चाहे वह केंद्र या राज्य सरकारों के लिए हो. नीचे दी गई टेबल में सालाना केंद्रीय बजट में शामिल अलग अलग प्रक्रियाओं के बारे में बताया गया है. यह 2021-22 के बजट की प्रक्रियाओं को दिखाता है, इसके समानांतर में, बजट 2020-21 का कार्यान्वयन भी जारी है और बजट 2019-20 का ऑडिट किया जा रहा है.
राज्य के बजट को सालाना वित्तीय विवरण के रूप में भी जाना जाता है. यह किसी राज्य के लिए एक वित्तीय वर्ष के दौरान कमाई और खर्च के विवरण का एक अनुमान होता है. ये एक साल के लिए कमाई के स्रोतों और खर्च व्यय के अनुमानों की जानकारी देता है. राज्य सरकारों के अकाउंट्स काफी हद तक केंद्र सरकार के समान होते हैं. राज्यों के लिए भी, भारत के संविधान में यह तय किया गया है कि विनियोग अधिनियम के अधिकार के बिना किसी राज्य की संचित निधि से कोई खर्चा नहीं किया जा सकता है. राज्य विधानसभा से इस अधिकार को हासिल करने के लिए, हर वित्तीय वर्ष के लिए अनुमानित कमाई और खर्च का विवरण, जिसे बजट के रूप में जाना जाता है, राज्य विधानसभा के सामने पेश किया जाता है.
राज्य स्तर पर बजट को अलग अलग विभागों को शामिल करके तैयार किया जाता है, क्योंकि राज्य में कई विभाग होते हैं, जो शिक्षा, कृषि, स्वास्थ्य, बच्चों आदि एक विशेष हिस्से/क्षेत्र/वर्ग की जिम्मेवारी सँभालते है. फिर बजट को फाइनेंस डिपार्टमेंट अंतिम रूप देता है और विधान सभा द्वारा उसे पास किया जाता है.
यह ध्यान देने योग्य है कि राज्य सरकारों को अपना बजट बनाने की आजादी होती है, और इसलिए सभी राज्य एक समान प्रक्रियाओं का पालन नहीं करते हैं. राज्यों में छोटे-छोटे भिन्नताएं/अंतर हो सकते हैं, लेकिन कुल मिलाकर, लगभग सभी बजट बनाने में निम्नलिखित कदम उठाते हैं::
बजट बनाने का नियम
इस स्तर पर, फाइनेंस डिपार्टमेंट बजट को आखिरी रूप देने के लिए संबंधित विभागों द्वारा दिए गए कमाई और खर्च के अनुमान पर तैयार करता है. आसानी से समझने के लिए, इस प्रक्रिया को दो चरणों में बांट दिया गया है, मतलब अनुमान और योजना, और बजट को आखिरी रूप देना.
पहला चरण 1: अनुमान और योजना/बजट सर्कुलर जारी करना
शुरुआत में, फाइनेंस डिपार्टमेंट उपलब्ध वित्तीय संसाधनों का आकलन करता है, जिसमें चल रही योजनाओं के तहत मिलने वाली सहायता, उन योजनाओं को लागू करने पर हुआ खर्च, पब्लिक सेक्टर और स्थानीय निकायों के धन, बकाया आदि शामिल होते हैं. इसके बाद सितंबर में, फाइनेंस डिपार्टमेंट राज्य सरकार के सभी प्रशासनिक विभागों और एजेंसियों को एक बजट सर्कुलर जारी करता है.
इसमें चालू वित्तीय वर्ष के लिए संशोधित अनुमान (RE) और अगले साल के लिए बजट अनुमान (BE) तैयार करने के संबंध में निर्देश शामिल हैं. सर्कुलर में बजट प्रक्रिया में हुए किसी भी बदलाव की जानकारी शामिल होती है, जैसे कि वर्गीकरण में बदलाव, प्रक्रिया में बदलाव, आदि, और बजट कैलेंडर वो होता है जिसमें बजट तैयार करने के लिए किए जाने वाले अलग अलग कामों की समय सीमा शामिल है.
बजट अनुमानों का निर्धारण
सर्कुलर जारी होने के बाद अलग-अलग विभाग बजट अनुमान तैयार करते हैं. ये अनुमान बजट प्राप्ति और खर्च से बना होता है. इन अनुमानों को संबंधित राज्यों के वित्तीय उत्तरदायित्व और बजट मैनेजमेंट एक्ट के तहत तैयार किया जाता है.
कमाई के अनुमान की तैयारी
कमाई (प्राप्ति) और अनुमान (पूंजी और राजस्व दोनों खातों पर) की तैयारी अगले साल में हासिल होने की उम्मीद पर टिकी होती है. इस प्रक्रिया को प्राक्कलन अधिकारी की देखरेख में किया जाता है. ऐसा अनुमान लगाते समय, संभावित कमाई जो होगी, जो बकाया है, और आर्थिक या पॉलिसी से जुड़े कारणों के चलते कमाई पर क्या प्रभाव पड़ेगा, ये देखना होगा.
खर्च का अनुमान लगाते समय
खर्च का अनुमान (पूंजी और राजस्व दोनों खातों पर) विभिन्न विभागों की वित्तीय जरूरतों के आधार पर तैयार किए जाते हैं. खर्च के सभी अनुमानों को मिलाकर राज्य सरकार, विधान सभा में फंड्स की मंजूरी की कुल मांग दिखाती है. खर्च का अनुमान लगाना एक बेहद महत्वपूर्ण काम है, जो सरकार को आने वाले साल में अपने खर्च का अंदाजा लगाने में सक्षम बनाता है.
संसाधनों के अनुमानों की प्रक्रिया की तरह, खर्च अनुमान भी प्राक्कलन अधिकारियों द्वारा तैयार किए जाते हैं, जिसमें चालू वित्तीय वर्ष के लिए संशोधित अनुमान (RE) और अगले वित्तीय वर्ष के लिए बजट अनुमान (BE) शामिल होते हैं. वित्तीय वर्ष 2016-17 तक, व्यय अनुमानों को प्लान और नॉन-प्लान खर्च में बांटा जाता था. हालांकि, 2017-18 के बाद से प्लान और नॉन-प्लान खर्च के इस अंतर को हटा दिया गया है. अब हर विभाग द्वारा योजनाओं का बजट अनुमान प्लानिंग डिपार्टमेंट द्वारा तय की गई सीमा के मुताबिक तैयार किया जाना है.
चरण 2: बजट को अंतिम रूप देना
बजट अनुमान को प्राक्कलन अधिकारियों से लेकर प्रशासनिक विभागों के प्रमुखों और आखिर में फाइनेंस डिपार्टमेंट को ट्रांसफर किया जाता है. फाइनेंस डिपार्टमेंट के पास इन अनुमानों की जांच की जिम्मेदारी होती है. जांच करने के अलावा, फाइनेंस डिपार्टमेंट के पास बजट अनुमान को कम करने जैसे बदलाव करने का अधिकार है, अगर डिपार्टमेंट को लगता है कि इतनी राशि खर्च नहीं की जाएगी, तो खर्च का सही वर्गीकरण किया जाएगा.
बजट को अंतिम रूप देने वाली समितियां (BFCs) अलग-अलग विभाग द्वारा बनाई जाती हैं, उनका काम फाइनेंस डिपार्टमेंट के साथ चर्चा करना है. इसी के आधार पर बजट को अंतिम रूप दिया जाता है. फाइनेंस डिपार्टमेंट के पास हर विभाग के लिए एक अलग डिविजन होता है. इन सभी अनुमानों को एक बार अंतिम रूप देने के बाद फाइनेंस डिपार्टमेंट द्वारा एकत्र (कंपाइल्ड) किया जाता है. आमतौर पर इसके बाद कोई संसोधन नहीं होता है. इस एकत्र रूप मिलकर राज्य का कुल बजट बनता है.
इसके बाद इसे दोबारा जांच और सुझावों के लिए प्लानिंग डिपार्टमेंट को भेजा जाता है जिसके बाद इसे फाइनेंस डिपार्टमेंट को वापस भेज दिया जाता है. ऐसे में फाइनेंस डिपार्टमेंट को अगर लगता है तो अनुमानों को संशोधित किया जाता है. बजट को आखिरी रूप देने से पहले फाइनेंस डिपार्टमेंट बजट पूर्व सलाह भी कर सकता है. ये सलाह और चर्चा शिक्षाविदों, गैर सरकारी संगठनों, श्रमिक संगठनों, किसान संगठनों और सामाजिक क्षेत्र के समूहों आदि के साथ होता है.
इसके अलावा, फाइनेंस डिपार्टमेंट पब्लिक फाइनेंस और बजट पर विशेषज्ञता रखने वाली आम जनता और संस्थानों/संगठनों से ऑनलाइन सुझाव मानते हैं. आखिरी अनुमान को एक ज्ञापन के रूप में कैबिनेट भेजे जाते हैं. कैबिनेट की मंजूरी के बाद आखिरी बजट अनुमान विधान सभा में पेश किया जाता है.
बजट कानून
फाइनेंस डिपार्टमेंट द्वारा बजट को आखिरी रूप देने के बाद, राज्य के वित्त मंत्री हर साल फरवरी/मार्च में विधानसभा में बजट पेश करते है. बजट पेश होने के बाद, विधानसभा अध्यक्ष बजट और बजट दस्तावेजों पर चर्चा करने के लिए एक दिन या दिनों की अवधि को चुनते हैं. एक बार जब ये चर्चा खत्म हो जाती है, तो अनुदान मांगों पर वोट होता है. इस पूरी प्रक्रिया के अंत में, एक विनियोग बिल पेश किया जाता है और उस पर मतदान किया जाता है. यह बिल राज्य की संचित निधि से बजट के मुताबिक सरकार को धनराशि इस्तेमाल के लिए मंजूरी देता है. विधानसभा द्वारा पास इस बिल को राज्यपाल के पास मंजूरी के लिए भेजा जाता है. फिर एक अधिसूचना आधिकारिक राजपत्र में प्रकाशित की जाती है. फंड्स पारित होने के बाद, फाइनेंस डिपार्टमेंट खर्च करने के लिए सभी विभागों/एजेंसियों/संस्थाओं को अधिकृत आवंटन की जानकारी देता है.
बजट को लागू करना
विनियोग बिल को राज्यपाल से मंजूरी मिलने के बाद, अलग-अलग प्रशासनिक विभागों को पैसों की मंजूरी के बारे में जानकारी दी जाती है. इसके बाद सरकारी योजनाओं और कार्यक्रमों को चलाने के लिए धनराशि को बांटा जाता है. इसके बाद उन योजनाओं और कार्यक्रमों की निगरानी की जाती है.
निधियों/अनुदानों का वितरण
फाइनेंस डिपार्टमेंट अपने इंटेग्रेटेड फाइनेंस मैनेजमेंट सिस्टम (वित्तीय प्रबंधन प्रणाली) सॉफ्टवेयर में हर विभाग के लिए जारी आवंटन की जानकारी रखता है. हर विभाग में बजट कंट्रोलिंग ऑफिसर और डिस्बर्स ऑफिसर होते हैं जिन्हें फंड्स के बंटवारे के नियंत्रण एवं निगरानी के साथ योजनाओं के क्रियान्वयन का काम सौंपा जाता है. इन अधिकारियों को प्रशासनिक विभाग से मिली धनराशि के बारे में जानकारी होती है. आहरण (ड्राइंग) और वितरण (डिस्बर्स) अधिकारियों को कोषागार से (सरकार की ओर से) धनराशि निकालने का अधिकार दिया जाता है ताकि विभिन्न योजनाओं एवं गतिविधियों को लागू किया जा सके.
निगरानी
एक बार धनराशि को मंजूरी मिलने और बंटवारे के बाद, यह सुनिश्चित करना जरूरी हो जाता है कि जिस उद्देश्य के लिए यह धनराशि दी गई है क्या उसका सही इस्तेमाल किया जा रहा है. इसकी कई स्तरों पर जांच की जाती है. कुल मिलाकर, फाइनेंस डिपार्टमेंट के पास राज्य के फाइनेंस मैनेजमेंट की जिम्मेदारी होती है. फाइनेंस डिपार्टमेंट के अलावा, बजट कंट्रोलिंग ऑफिसर्स और डिसबर्सिंग अधिकारियों को धन का सही इस्तेमाल हो रहा है, इसकी निगरानी करनी होती है. वो हर मद के तहत खर्च को ट्रैक करने के लिए रजिस्टर बनाते हैं.
इसी प्रकार आहरण एवं वितरण अधिकारी ऐसे विवरण बजट कंट्रोलिंग ऑफिसर्स को पेश करते हैं. इन विवरणों के आधार पर अकाउंट जनरल, फाइनेंस डिपार्टमेंट के लिए मासिक कमाई एवं खर्च की जानकारी देता है.
इसी तरह, मनरेगा जैसी योजनाओं के लिए एक मैनेजमेंट इंफॉर्मेशन सिस्टम है जिसके जरिए इन योजनाओं की निगरानी के लिए रिपोर्ट तैयार की जाती है. मुख्यमंत्री कार्यालय, मुख्यमंत्री सूचना प्रणाली (सीएमआईएस) के जरिए से बजट घोषणाओं के कार्यान्वयन की निगरानी भी करता है. योजनाओं के लागू कराने को लेकर फिजिकल और फाइनेंशियल ग्रोथ की निगरानी के लिए सरकारों के विभिन्न स्तरों पर कई डैशबोर्ड बनाए गए हैं.
ऑडिट
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 150 के अनुसार, हर महीने राज्य में महालेखाकार (AG) (भारत के CAG के ऑफिस का हिस्सा) सरकारी खातों के ऑडिट के लिए जिम्मेदार है. राज्य सरकार की ओर से जवाबदेही और पारदर्शिता को बढ़ावा देने के लिए इस तरह के लेखा परीक्षा और लेखा की प्रैक्टिस की जानी चाहिए.
महालेखाकार (अकाउंटेंट जनरल) का ऑफिस राज्य सरकार के मासिक अकाउंट्स के संकलन के लिए जिम्मेदार होता है. राज्य के कोषागारों के निरीक्षण तथा विनियोग अकाउंट तथा फाइनेंस अकाउंट जैसे विभिन्न प्रकार के अकाउंट्स को तैयार करने के लिए जिम्मेदार है.
इन रिपोर्टों को तैयार करने के लिए बजट कंट्रोलिंग ऑफिसर्स से जानकारी जुटाई जाती है. ये अभ्यास वित्तीय वर्ष समाप्त होने के तुरंत बाद, यानी हर साल अप्रैल की शुरुआत में किए जाते हैं. विनियोग अकाउंट की फाइनल कॉपी फाइनेंस डिपार्टमेंट को रिव्यू के लिए भेजी जाती है. इसके आधार पर फाइनेंस डिपार्टमेंट एक और स्टेटमेंट तैयार करता है जो वित्त मंत्री को सौंपा जाता है.
सरल शब्दों में कहें तो, अकाउंटेंट्स जनरल के ऑफिस के ऊपर ऑडिट रिपोर्ट तैयार करने की जिम्मेदारी होती है, जो राज्य के विनियोग अकाउंट में विभिन्न बजटीय अनियमितताओं के बारे में बताता है. महालेखाकार का ऑफिस राज्य सरकार के सालाना बजट के लेखा मानक को बनाए रखने के लिए भी जिम्मेदार है.
राज्य की बजट प्रक्रिया की टाइमलाइन
जैसा कि पिछले हिस्सों में बताया गया है, बजट बनाना एक लंबी और विस्तृत प्रक्रिया है और यह उस वित्तीय वर्ष से जुड़ी है जिसके लिए इसे बनाया गया है. फिगर 2 में संभावित टाइमलाइन के बारे में जानकारी दी गई है, जो एक राज्य अपने 2021-22 के बजट के लिए अनुसरण कर सकता है.
फिगर 2: राज्य बजट प्रक्रियाओं के अलग-अलग चरण, 2021-22