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VIII

बजट का ऑडिट

1.

ऑडिट की कुछ मूलभूत जानकारियां

Section titled ऑडिट की कुछ मूलभूत जानकारियां

एक स्वस्थ्य लोकतंत्र के लिए जरूरी है कि देश के नागरिक, सरकारों को उनके कामों के लिए जवाबदेह ठहराएं। हालांकि, सरकारों को जवाबदेह ठहराने के लिए उनके प्रदर्शन को अलग अलग मानकों पर नापने की जरूरत होती है। सरकार के प्रदर्शन का विश्लेषण और मूल्यांकन करने की इसी प्रक्रिया को 'ऑडिट' कहा जाता है।

ऑडिट क्या है?

ऑडिट को कुछ इन शब्दों में परिभाषित किया जा सकता है- किसी खास ईकाई या घटना से संबंधित डेटा का एक पूर्ण निर्धारित मानकों के अनुसार व्यवस्थित जांच करना इस उद्देश्य से कि क्या निर्धारित मानकों और दिशा निर्देशों का पालन हुआ है- इस प्रक्रिया को ऑडिट कहते हैं?

उदाहरण के लिए, सरकार जो काम करती है, उसका एक मकसद होता है। उसके लिए एक बजट जारी किया जाता है, और इसमें कई अलग अलग प्रक्रिया ये और अधिकारी शामिल होते हैं। एक बार जब सारी प्रक्रिया ये पूरी हो जाती है और जरूरी डेटा/सूचना दर्ज कर लिया जाता है, तो इन रिकॉर्ड की जांच पहले से तय मानकों और नियमों के अनुसार की जाती है. उदाहरण के तौर पर निम्नलिखित मुद्दों पर जांच की जा सकती है.

● क्या बजट में आवंटित धन पहले से तय प्रक्रिया के मुताबिक खर्च किया गया था 
● क्या संस्थाएं और इस बजट प्रक्रिया में शामिल अधिकारी दिशा-निर्देशों का पालन करते हैं 
● क्या  फंड फ्लो या खर्च दिशा निर्देशों के अनुसार किया गया या इमें किसी प्रकार की कोई कमी रही है 

इस तरह की जांच के सभी फैसलों पर आधारित रिपोर्ट को प्रकाशित किया जाता है। इन सभी प्रक्रियाओं को मिलाकर ऑडिट कहा जाता है।

बजट सरकार की राजकोषीय नीतियों को तय करता है, जिसमें कमाई, खर्च और उन आर्थिक नीतियों की जानकारी होती है, जिन पर ये आधारित होते हैं। एक पब्लिक डॉक्यूमेंट्स के रूप में, बजट को सार्वजनिक प्रकटीकरण, मूल्यांकन और ऑडिटिंग की जरूरत होती है। ऑडिट रिपोर्ट, बजट चक्र का अंतिम चरण है क्योंकि इसे तभी तैयार किया जा सकता है, जब जरूरी रिकॉर्ड और सभी जानकारी मौजूद हों। ऑडिट रिपोर्ट तब राष्ट्रपति/राज्यपालों को पेश की जाती है, जो बजट सेशन शुरू होने से पहले संसद या राज्य विधानमंडलों के सामने पेश करते हैं। ऑडिटर न केवल खर्च बल्कि कमाई का भी ऑडिट करता है। उदाहरण के लिए, क्या टैक्स कलेक्शन करते समय सही प्रक्रियाओं और नियमों का पालन किया गया, इसकी भी जांच की जाती है। इसके अलावा, यह कुछ सरकारी नीतियों की कमाई के प्रभाव का विश्लेषण भी कर सकता है। 

यह ध्यान देना जरूरी है कि इस सेक्शन में केवल सरकारी बजट और उसके प्रदर्शन के संबंध में ऑडिटिंग पर चर्चा की गई है। लेकिन, ऑडिटिंग की प्रक्रिया का एक व्यापक दायरा है। गैर-सरकारी और गैर-लाभकारी संगठन, बिजनेस, कॉरपोरेशन के साथ-साथ एजुकेशनल इंस्टिट्यूट में भी इस प्रक्रिया का व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाता है। 

फिगर 1: बजट चक्र में ऑडिट प्रक्रिया कहां मौजूद होती है

सरकार बजट का क्यों ऑडिट कराती है?

ऑडिट, यह जांचने में मदद करता है कि क्या सरकारी काम, जैसे कि बजट आवंटन, योजनाओं की रूपरेखा और उनका कार्यान्वयन तय नियमों और मानकों के मुताबिक है। इसमें निजी फायदे के लिए आम जनता के पैसे का इस्तेमाल, अप्रभावी तरीकों से किया गया खर्च, प्रक्रियाओं में कमियों या जनता के हित में फैसले नहीं लेने से पैदा होने वाली वित्तीय गलतियां उजागर होती हैं। इसलिए, ऑडिटिंग रिपोर्ट के जरिए जनता को सरकार का प्रदर्शन समझने के लिए महत्वपूर्ण अंत:दृष्टि मिलती है। इससे जनता सरकार से अधिक जवाबदेही की मांग कर सकती है।

बजट ऑडिट की प्रक्रिया क्या है?

ऑडिट की प्रक्रिया में आम तौर पर रिकॉर्ड्स की जांच और बाद में ऑडिटिंग रिपोर्ट का प्रकाशन शामिल होता है। ऑडिट करने के लिए दो मुख्य जरूरतें हैं- पहली ईकाई या योजना जिसका ऑडिट होना है, उसके संबंधित सारे आवश्यक प्रासंगिक रिकॉर्ड्स का रखरखाव और दूसरी एक पूर्वनिर्धारित अकाउंट स्टैंडर्ड्स। ऑडिट रिपोर्ट तैयार होने के बाद, उसे संबंधित हितधारकों, जैसे मंत्रालयों और सांसदों को भेजा जाता है। ज्यादातर मामलों में इसे सार्वजनिक भी किया जाता है।

ऑडिट के अलग-अलग कितने प्रकार होते हैं?

ऑडिट किए जा रहे विषय के आधार पर, ऑडिट को मोटे तौर पर 3 धाराओं में बांटा जा सकता है। वित्तीय ऑडिट, नियमितता (अनुपालन) ऑडिट, और परफॉर्मेंस ऑडिट। इनमें से हर की नीचे चर्चा की गई है।

● फाइनेंशियल ऑडिट

ये फाइनेंशियल रिकॉर्ड्स की जांच करने वाली प्रक्रिया है। इसके जरिए पता लगाया जाता है कि इन फाइनेंशियल रिपोर्टिंग और  तैयार करने में तय मानकों और नियमों का पालन हुआ है कि नहीं। फाइनेंशियल स्टेटमेंट के ऑडिट में वित्तीय स्थिति, संचालन के परिणाम और कैश फ्लो का सही और निष्पक्ष तरीके से इस्तेमाल हुआ है कि नहीं, इन सभी की सही जानकारी होना जरूरी है।

● अनुपालन लेखा परीक्षा (कंप्लायंस ऑडिट)

इस ऑडिट के जरिए यह पता लगाया जाता है कि सरकार का खर्च बजट विधायी प्राधिकरण के अनुसार था या नहीं, और क्या किया गया खर्च संबंधित कानूनों, नियमों और रेगुलेशन के मुताबिक थे या नहीं? इस ऑडिट के जरिए सार्वजनिक अधिकारी या सार्वजनिक धन का इस्तेमाल करने वाले व्यक्ति द्वारा की गई कार्रवाई की जांच करने के साथ-साथ इसकी भी जांच करना है कि उसके फैसले या उसे लागू करने की प्रक्रिया तय कानून, नियमों या विनियमों के मुताबिक हुई है या नहीं? 

उदाहरण: अनुपालन लेखा परीक्षा (कंप्लायंस ऑडिट)

सरकारी बजट के साथ-साथ सरकारी फंड से चलने वाले संस्थानों का भी ऑडिट किया जाता है। इसी तरह का एक ऑडिट कंप्लायंस ऑडिट है। उदाहरण के लिए, सरदार वल्लभ भाई पटेल राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (SVNIT), सूरत पर कंप्लायंस ऑडिट किया गया। इस ऑडिट में सामने आया कि SVNIT उचित प्रक्रिया का पालन नहीं कर रहा था जिसके चलते 74.25 लाख रुपए के राजस्व की वित्तीय हानि हुई। इस फंड का नुकसान एनआईटी अधिनियम और विधियों के प्रावधानों का पालन न करने के कारण हुआ। 
यहां ऑडिट रिपोर्ट का एक हिस्सा दिया गया है।
एनआईटी अधिनियम, 2007 की धारा 26 के साथ संचालित राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईटी) के कानून 38 के अनुसार, 'हर एनआईटी में एक आवासीय संस्थान होगा और सभी छात्र और रिसर्च के लिए छात्र छात्रावासों और हॉल में रहेंगे। इस उद्देश्य के लिए एनआईटी द्वारा आवास का निर्माण कराया गया। यहां एनआईटी के पहले कानून 38 का गैर-अनुपालन (नॉन कंप्लायंस) का उदाहरण दिया गया है। हॉस्टल में नहीं रहने वाले सभी इनरोल छात्रों से सीट का किराया वसूल नहीं किया गया था, इसके लिए अनुरोध को 39वें BoG ने अस्वीकार कर दिया गया था। इसके परिणामस्वरूप 2012-13 से 2018-19 की अवधि के बीच संस्थान को 74।25 लाख रुपए के राजस्व का नुकसान हुआ।'

●  परफॉर्मेंस ऑडिट

परफॉर्मेंस ऑडिट अपने लक्ष्यों और उद्देश्यों में किसी संगठन, कार्यक्रम, परियोजना या गतिविधि के परफॉर्मेंस का एक स्वतंत्र मूल्यांकन होता है। इसके जरिए ये जानने में मदद मिलती है कि पैसे, कर्मियों और सामग्री के उपलब्ध संसाधनों के इस्तेमाल से कितने बेहतर परिणाम हासिल हुए हैं। इसका उद्देश्य ये मूल्यांकन करने के लिए किया जाता है कि क्या सरकारी कार्यक्रमों के जरिए उद्देश्यों को बेहतर और प्रभावी ढंग से कम लागत पर हासिल किया है, और क्या इसका फायदा इच्छित लाभार्थियों तक पहुंच रहा है। सार्वजनिक खर्च की अर्थव्यवस्था (Economy), दक्षता (Efficiency) और प्रभावशीलता (Effectiveness) के मूल्यांकन को ऑडिट के 3E के रूप में जाना जाता है।

उदाहरण: परफॉर्मेंस ऑडिट

इस मूल्यांकन को एक रिपोर्ट के रूप में तैयार किया जाता है जिसे संबंधित विभाग में बांटा जाता है। एक परफॉर्मेंस ऑडिट रिपोर्ट में प्रमुखतौर पर प्रणालीगत खामियों को सामने लाया जाता है और उन खामियों क दूर करने के लिए सिफारिशें भी पेश की जाती हैं। ऐसा कोई निश्चित नियम नहीं है कि सभी योजनाओं के लिए परफॉर्मेंस ऑडिट रिपोर्ट तैयार की जाएगी। आमतौर पर, भारत में सर्वोच्च लेखा परीक्षा संस्थान नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG), यह तय करता है कि किन योजनाओं का ऑडिट किया जाना है। कुछ मामलों में, विभाग एक परफॉर्मेंस ऑडिट रिपोर्ट के लिए अनुरोध भेजते हैं। परफॉर्मेंस ऑडिट रिपोर्ट कराने का फैसला लेने में, ऑडिटर योजनाओं की प्रकृति के आधार पर इंडिकेटर्स (संकेतकों) की एक सीरीज तैयार कर सकता है। मिड डे मील की प्रभावशीलता को मापने के लिए इंडिकेटर्स की एक उदाहरण सूची इस प्रकार है।

● मिड डे मील का नियमित प्रावधान

● खाद्यान्नों की पर्याप्तता

● पोषण के हिसाब से खाद्यान्नों और खाद्य तेलों की क्वालिटी 

● बजट प्रावधान/उपयोग की सीमा 

● किचन शेड और बिना शेड वाले स्कूल बनाने के लिए सेंट्रल फंड्स का उपयोग

● स्कूलों/शिक्षा गारंटी योजना (EGS)/ऑप्शनल और अभिनव शिक्षा (AIE) सेंट्रर्स का कवरेज 

● स्कूलों में पीने के पानी की व्यवस्था 

● स्वास्थ्य पर प्रभाव की जांच

● निगरानी और सुपरविजन

ये कुछ संकेतक हैं; CAG ऑडिट रिपोर्ट ऐसे अलग-अलग गुणात्मक पहलुओं पर विस्तार से विश्लेषण करता है। 

2.

भारत में बजट ऑडिट कौन करता है और ये कैसे किया जाता है?

Section titled भारत में बजट ऑडिट कौन करता है और ये कैसे किया जाता है?

दुनिया के सभी लोकतांत्रिक देशों में आम तौर पर कार्यपालिका से अलग एक स्वतंत्र संस्था होती है जो सरकार के अकाउंट्स का सालाना ऑडिट करती है। इस संस्था को सुप्रीम ऑडिट संस्थान के रूप में जाना जाता है और ये राष्ट्रीय एजेंसियां होती हैं जो सरकारी राजस्व और खर्च के ऑडिट के लिए जिम्मेदार हैं। सुप्रीम ऑडिट संस्थानों का अंतरराष्ट्रीय संगठन (INTOSAI) आम तौर पर सरकारी ऑडिट समुदाय के लिए एक छत्र संगठन के रूप में कार्य करता है। 

भारत का सीएजी भारत का सर्वोच्च लेखा परीक्षा संस्थान है, जो न केवल खर्च बल्कि कमाई का भी लेखा परीक्षा करता है। भारत में CAG ऑफिस लेखा महानियंत्रक (सीजीए) के ऑफिस के साथ समन्वय में काम करते हैं। जो केंद्र सरकार के अकाउंटिंग मामलों पर प्रमुख सलाहकार है। CGA केंद्र सरकार के अकाउंट्स को तैयार करने और पेश करने, राजकोष नियंत्रण और आंतरिक ऑडिट के साथ-साथ तकनीकी रूप से मजबूत मैनेजमेंट अकाउंटिंग सिस्टम की स्थापना और प्रबंधन के लिए जिम्मेदार है। 

भारत में ऑडिट के लिए संवैधानिक प्रावधान क्या हैं?

भारत के संविधान में 'भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक' के ऑफिस का प्रावधान है। भारत के सीएजी को बिना किसी डर और पक्षपात के कर्तव्य पालन के लिए सुरक्षा, स्थिरता और स्वतंत्रता प्रदान की जाती है। 

संविधान में केंद्र और राज्य सरकारों के अकाउंट्स के ऑडिट रिपोर्ट्स और भारत के राष्ट्रपति और राज्यों के राज्यपालों को प्रस्तुत की जाने वाली रिपोर्टों के संबंध में CAG के कर्तव्यों और शक्तियों की जानकारी दी गई है। यह नगर पालिकाओं और पंचायतों के साथ-साथ सहकारी समितियों के अकाउंट्स के ऑडिट प्रावधानों के बारे में जानकारी देता है। 

केंद्र सरकार के अकाउंट की तैयारी लेखा महानियंत्रक (CGA) द्वारा की जाती है, जो केंद्र सरकार में वित्त मंत्रालय का एक हिस्सा है। CGA केंद्र सरकार के विनियोग और वित्त खातों को एक छोटे रूप में तैयार करता है। हालांकि, CGA द्वारा अकाउंट्स तैयार करना आखिरी चरण नहीं है। अकाउंट्स की सटीकता और पूर्णता के लिए वेरिफिकेशन जरूरी है ताकि यह पता लगाया जा सके कि किए जा चुके खर्च और संसद द्वारा स्वीकृत खर्च के बीच में कोई अंतर और कमी तो नहीं है। इसलिए, CGA के जरिए तैयार किए गए अकाउंट्स का CAG ऑडिट किया जाता है। ऑडिट हो चुके अकाउंट्स की CGA रिपोर्ट संसद के दोनों सदनों के सामने रखी जाती है। CAG की रिपोर्ट एक प्रमाण पत्र जारी करने के बराबर है।

CAG की टिप्पणियों में बजट में मतदान और प्रभारित खर्च से जुड़ी आपत्तियों और अनियमितताओं को संक्षेप में पेश किया जाता है। CAG के पास केंद्र और हर राज्य के खातों के शुरुआती और सब्सिडरी खातों को संकलित (कम्पाइल) करने के लिए जिम्मेदार होती है। 

CAG के क्या कर्तव्य होते हैं? 

CAG को ऑडिट करने के लिए डेटा और सूचना की आवश्यकता होती है। रिकॉर्ड्स बनाने और उनके रखरखाव में शुरुआती भूमिका CGA की होती है। इस प्रकार CGA केंद्र और राज्य सरकारों से संबंधित सरकारी अकाउंटिंग (लेखांकन) के सामान्य नियमों को निर्धारित करने, अकाउंट्स के रूप, और नियमों को बनाने या संशोधन करने की जिम्मेदारी होती है। सामान्य रूप से इनके पास भारतीय रिजर्व बैंक के साथ केंद्र सरकार के कैश बैलेंस और आम जनता से जुड़े मंत्रालयों या विभागों से संबंधित रिजर्व डिपॉजिट जमाराशियों के देखरेख की जिम्मेदारी होती है। राजस्व वसूली और खर्च के रुझानों की समीक्षा के अलावा, CGA हर महीने अकाउंट्स की तैयारी और कंसॉलिडेशन (समेकन) के लिए भी जिम्मेदार है। इसके अन्य कामों में केंद्र सरकार के उद्देश्य के लिए संबंधित हेड्स के तहत सालाना कमाई और डिस्बर्समेंट को दर्शाने वाले अकाउंट्स तैयार करना शामिल है। 

CAG भारत के संविधान के  (अनुच्छेद 148-151) प्रावधानों के तहत राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त एक अधिकारी होता है। इसका मतलब है कि यह अधिकारी सरकार के एक्जीक्यूटिव, न्यायिक और विधायी हिस्सों और  राजनीतिक वातावरण से स्वतंत्र है। CAG के विपरीत, CGA एक संवैधानिक निकाय नहीं है बल्कि भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के तहत व्यय विभाग का हिस्सा होता है। CAG की प्राथमिक जिम्मेदारी विधायकों और उनके जरिए से देश के नागरिकों को स्वतंत्र आश्वासन प्रदान करना है कि सरकार ने संसद/राज्य विधानमंडल द्वारा जारी धन का इस्तेमाल और हिसाब कैसे किया है। साथ ही साथ टैक्स सिस्टम के कामकाज में अंतर्दृष्टि प्रदान करता है। इसलिए, CAG 'रिपोर्टिंग' की प्रक्रिया को देश में एक महत्वपूर्ण संवैधानिक जरूरत के लिए तैयार किया गया है।

CAG का यह कर्तव्य है कि वह भारत की संचित निधि से और हर राज्य और केंद्र शासित प्रदेश की विधानसभा से संबंधित खर्चों का लेखा-जोखा करे। इसका काम यह पता लगाना है कि अकाउंट्स में दिखाया गया धन कानूनी रूप से मौजूद था और जिस उद्देश्य के लिए उन्हें दिया गया था क्या वह खर्च अथॉरिटी के तय नियम के अनुरूप है, जो इसे नियंत्रित करता है। CAG आकस्मिक निधियों और पब्लिक अकाउंट से संबंधित केंद्र और राज्यों के सभी लेन-देनों का ऑडिट करता है; केंद्र या राज्य के किसी भी डिपार्टमेंट में रखे गए सभी ट्रेडिंग, मैन्युफैक्चर, प्रॉफिट और लॉस अकाउंट्स, बैलेंस शीट और अन्य सब्सिडयरी अकाउंट्स की ऑडिटिंग शामिल है।

फिगर 2: CAG की कार्यप्रणाली

केंद्र और राज्य सरकारों की ऑडिट रिपोर्ट

फिगर 3:ऑडिट ऑफिस 

स्थानीय निकायों के लिए ऑडिटिंग: PRIs और ULBs

73वें और 74वें संवैधानिक संशोधनों के पारित होने के साथ, छठवीं अनुसूची के तहत आने वाले क्षेत्रों को छोड़कर, पंचायती राज व्यवस्था को औपचारिक रूप से भारत के सभी भागों में हिस्सा किया गया है।
नतीजतन, ग्रामीण और शहरी स्थानीय निकायों (क्रमशः पंचायतों और नगर पालिकाओं) को निधियां, कार्य और कार्यप्रणाली आदि शामिल है हालांकि, वित्तीय जवाबदेही (कानूनी जरूरतों के अनुसार पैसे का इस्तेमाल और संसाधनों के इस्तेमाल में दक्षता) एक मुद्दा बन गया है।

ऑडिट के मामले में, ऑडिटिंग का तंत्र डायरेक्टर ऑफ लोकल फंड ऑडिट (DLFA) से शुरू होता है, जो परीक्षक तक जाता है। अनुपालन लेखापरीक्षा (कंप्लायंस ऑडिट) की रिपोर्टिंग ग्यारहवें वित्त आयोग (ईएफसी) की सिफारिशों पर आधारित है। CAG को स्थानीय निकायों के तकनीकी गाइडेंस और सुपरविजन की जिम्मेदारी सौंपी जाती है। स्थानीय फंड ऑडिटर, जो राज्य सरकार का अधिकारी होता है, पंचायती राज संस्थानों (PRIs) और शहरी स्थानीय निकायों (ULBs) के ऑडिट के लिए जिम्मेदार है। बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल राज्यों में, नियंत्रक-महालेखापरीक्षक के ऑफिस से जुड़े स्थानीय निधि लेखा परीक्षक (एग्जामिनर), पंचायती राज संस्थाओं और शहरी स्थानीय निकायों के अकाउंट्स की ऑडिटिंग के लिए जिम्मेदार हैं.

CAG उन मामलों में PRIs और ULBs का ऑडिट कर सकता है, जहां भारत की संचित निधि से अनुदान या कर्ज फाइनेंस किया जाता है, या CAG (कर्तव्यों, शक्तियों और सेवा की शर्तों) अधिनियम, 1971 की धारा 14 के मुताबिक विधानसभा वाले किसी भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश में ऑडिट कर सकता है..

ऑडिट कैसे किया जाता है?

आमतौर पर ऑडिटिंग की प्रक्रिया इन चरणों से होकर गुजरती है –

पहला चरण: ऑडिट अधिकारी के साथ ग्रुप बी और डी के अधिकारियों की टीम एक ऑडिट करती है और उससे निकले निष्कर्षों को संबंधित विभाग (जैसे शिक्षा, राजस्व या स्वास्थ्य) को भेजती है।

दूसरा चरण: ऑडिट मेमो जारी किए जाते हैं और अनियमितता/अनुचितता/अक्षमता या असंतोषजनक स्थिति में, इन्हें जवाब के लिए विभाग को भेजा जाता है।

तीसरा चरण: जवाब मिलने के बाद फील्ड ऑडिट ऑफिस ड्राफ्ट इंस्पेक्शन रिपोर्ट तैयार करता है, जो ग्रुप अधिकारी को भेजी जाती है।

चौथा चरण: समूह अधिकारी फाइनल ऑडिट इंस्पेक्शन रिपोर्ट तैयार करता है जिसे टिप्पणियों के लिए आगे भेजा जाता है। 

पांचवां चरण: ऑडिट पैराओं को शामिल करने के बाद, इसे विभागाध्यक्ष (डिपार्टमेंट हेड) और प्रशासन के प्रमुख को समीक्षा के लिए भेजा जाता है; इसके बाद अनियमितता या अक्षमता के केस में, विभाग से जवाब का इंतजार किया जाता है।

छठवां चरण: आखिरी ड्राफ्ट पैरा (ऑडिट) को जोड़ा जाता है जिसके बाद इसे CAG मुख्यालय/राज्य सीएजी कार्यालय को दाखिल करने के लिए भेजा जाता है। 

फिगर 4: कैसे किया जाता है ऑडिटफिगर 4: कैसे किया जाता है ऑडिट

शुरुआती ऑडिट और निरीक्षण रिपोर्ट के लिए, उदाहरण के लिए किसी विभाग के लिए एक विशेष राज्य सरकार की प्रक्रिया इस प्रकार है: 

एक साल के लिए ऑडिट प्लानिंग में जोखिम-विश्लेषण के मुताबिक अलग अलग स्तरों पर बनाए गए राज्य सरकार के अकाउंट्स का लेखा-जोखा तैयार किया जाता है। कुछ ऑफिस का सालाना ऑडिट किया जाता है, कुछ का द्वि-वार्षिक और कुछ का 3 साल में एक बार या 5 साल में एक बार होता है।

ऑडिट के दौरान, ऑडिट से जुड़े कर्मचारी अलग अलग बिंदुओं पर सूचना के लिए संवितरण (डिस्बर्सिंग) अधिकारी/पे-अकाउंट्स अधिकारी/ऑफिस और नियंत्रक प्राधिकारियों को ज्ञापन जारी करता है। ऑडिटिंग से मिलने वाली ऐसी सभी आपत्ति ज्ञापनों पर तत्काल ध्यान दिया जाता है और एक समय सीमा के अंदर जवाब भेजे जाते हैं। ऑडिट रिपोर्ट्स पर आपत्तियों, टिप्पणियों और समीक्षाओं पर निगरानी के लिए हर आहरण एवं वितरण अधिकारी (ड्राइंग और डिस्बर्सिंग ऑफिसर)/ऑफिस हेड द्वारा ऑडिट टिप्पणियों का एक रजिस्टर रखा जाना चाहिए।

सीएजी की अलग-अलग रिपोर्ट्स क्या हैं?

भारत के सीएजी द्वारा तैयार की गई ऑडिट रिपोर्ट्स निम्नलिखित हैं।

1. यूनियन रिपोर्ट्स: इनमें केंद्र सरकार के सिविल मंत्रालयों/विभागों से संबंधित अलग अलग नागरिक अनुदानों के तहत वित्तीय लेनदेन के अनुपालन लेखापरीक्षा (कंप्लायंस ऑडिट) में निकलकर सामने आने वाले महत्वपूर्ण ऑडिट शामिल हैं।

2. स्टेट रिपोर्ट्स: कई अकाउंटिंग रिपोर्टें हैं जैसे राज्य सरकार की वित्तीय स्थिति का आकलन करने और बजटीय और खर्च नियंत्रणों की जांच करने के लिए राज्यों के फाइनेंस और विनियोग खाते आदि। ये रिपोर्ट वित्तीय रिपोर्टिंग के तहत चालू वर्ष के दौरान वित्तीय नियमों, प्रक्रियाओं और निर्देशों के अनुपालन के हालातों पर भी नजर रखती हैं।

3. स्थानीय निकाय ऑडिट रिपोर्ट्स: इनमें पंचायती राज संस्थाओं के साथ-साथ शहरी स्थानीय निकायों के वित्तीय लेनदेन की वित्तीय रिपोर्टिंग और ऑडिटिंग शामिल है। 

4. अनुपालन लेखापरीक्षा (कंप्लायंस ऑडिट): ये राज्य सरकारों के अलग अलग विभागों की कमाई के साथ-साथ खर्च के अनुपालन लेखापरीक्षा से टिप्पणियों को संकलित करते हैं। 

5. फाइनेंशियल ऑडिट रिपोर्ट्स: राज्य फाइनेंशियल ऑडिट रिपोर्ट्स खातों के आधार पर राज्य सरकारों के वित्तीय प्रदर्शन का आकलन करती है। 

6. निष्पादन लेखापरीक्षा रिपोर्ट (परफॉर्मेंस ऑडिट रिपोर्ट): ये अलग-अलग क्षेत्रों में राज्य सरकारों के वित्तीय प्रदर्शन का मूल्यांकन करने के लिए ऑडिट अकाउंट्स के आधार पर तैयार किए जाते हैं, जैसे पब्लिक सेक्टर PSUs सहित उच्च शिक्षा, सामान्य, सामाजिक, आर्थिक और राजस्व आदि क्षेत्रों में। 

भारत का CAG राज्य सरकारों और राज्य के मालिकाना वाली कंपनियों और वैधानिक निगमों के खातों पर निम्नलिखित रिपोर्ट प्रस्तुत करता है:
1. फाइनेंस अकाउंट्स
2. विनियोग अकाउंट्स
3. CAG रिपोर्ट (सिविल)
4. CAG रिपोर्ट (कमाई प्राप्तियां) और
5. CAG रिपोर्ट (व्यवसायिक)
प्रभावी रूप से, रिपोर्ट ही एकमात्र आखिरी आउटपुट है जिसे CAG पेश करता है और जिस पर बाद में विधायिका में विभिन्न समितियों द्वारा चर्चा की जाती है। इसलिए, यह बेहद जरूरी है कि रिपोर्ट में सटीकता और स्पष्टता के साथ-साथ समयबद्धता दोनों के मामले में क्वालिटी के उच्च स्तर को बनाए रखता है। 

ऑडिट रिपोर्ट्स तैयार करने की प्रक्रिया

CAG केंद्र के खातों से संबंधित ऑडिट रिपोर्ट, विनियोग अकाउंट्स और वित्तीय अकाउंट्स को राष्ट्रपति को के सामने पेश करता है, जो उन्हें संसद के हर सदन के सामने पेश करता है। राज्यों के अकाउंट्स से जुड़ी वही रिपोर्ट और अकाउंट्स राज्यों के राज्यपालों को संबंधित विधानसभाओं के समक्ष प्रस्तुत करने के लिए दिए जाते हैं। सभी वैधानिक निगमों और स्वायत्त (ऑटोनॉमस) निकायों पर अलग ऑडिट रिपोर्ट भी सीएजी द्वारा पेश की जाती है, जिसके लिए ये अकेला ऑडिटर होता है। CAG निम्नलिखित क्षेत्रों के लिए विधानसभाओं के साथ संसद/राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की विधानसभाओं के लिए एक या उससे अधिक ऑडिट रिपोर्ट्स पेश करता है:

फिगर 5: CAG की ऑडिट रिपोर्ट्स

क्या CAG ऑडिट रिपोर्ट्स के जरिए शासन की जवाबदेही सुनिश्चित करता है?

CAG, ऑडिट की औपचारिक जवाबदेही का तंत्र है। हालांकि, अस्तित्व में आने के बाद से इसमें बदलाव आया है, खासकर पंचवर्षीय योजनाओं की शुरूआत के बाद से ये बदलाव दिखा है। संसद और आम जनता यह जानने में रुचि रखते थे कि क्या अलग अळग विकास और कल्याण कार्यक्रम बेहतर ढंग से कार्यान्वित किए जा रहे हैं। केंद्र द्वारा प्रायोजित कार्यक्रमों पर ज्यादा ध्यान देने के साथ, खर्च की जानकारी जानना महत्वपूर्ण हो गया (कितना और कितना प्रभावी ढंग से खर्च किया जा रहा था)। यह इस समय था कि CAG की रिपोर्ट्स को अत्यधिक महत्व मिला। CAG की अनुपालन और निष्पादन लेखापरीक्षा रिपोर्टों जरिए यह जानकारी हासिल होना आसान हो गया कि कितना खर्च किया गया और कार्यक्रमों को लागू करने में कितनी कमियां थीं। इसने विशेष कार्यक्रमों को लागू करने में देरी, लक्ष्यों हासिल न होने और अधिक खर्च के अलावा योजना और निष्पादन में दोषों के कारणों पर भी प्रकाश डालती है।

3.

बजट का ऑडिट और उस पर विधायी नियंत्रण

Section titled बजट का ऑडिट और उस पर विधायी नियंत्रण

अलग अलग मंत्रालयों/विभागों में प्रशासनिक गतिविधियों पर नियंत्रण की खातिर जन प्रतिनिधियों (सांसद और विधायकों) को सक्षम बनाने के लिए, संवैधानिक प्रावधान दिए गए हैं। इन प्रावधानों के तहत वे सरकार की बजटीय और विशेष मंत्रालय/विभाग की प्रक्रियाओं को प्रभावित कर सकते हैं। ये प्रावधान सांसदों और विधायकों को सरकार के प्रदर्शन की समीक्षा और आलोचना करने और सुझाव देने का अवसर देते हैं।

देश की सर्वोच्च ऑडिट एजेंसी एक पब्लिक ऑडिट में संसद और राज्य विधानसभाओं के लिए 'कार्यकारियों' को जवाबदेह ठहरा सकती है। इसको सुनिश्चित करने के लिए 'चेक एंड बैलेंस' बनाए रखा जाए और सार्वजनिक धन और संसाधनों का दुरुपयोग होने से रोका जाए। भारत के संविधान ने देश में ऑडिट प्रक्रिया के संबंध में पहले से कुछ प्रावधान तय किए हैं। 

CAG और पार्लियामेंट में कमेटियां

विनियोगों (एप्रोप्रिएशन) को स्वीकृत करने के अलावा, विधायिका के पास यह सुनिश्चित करने के साधन भी हैं कि विनियोग (एप्रोप्रिएशन) स्वीकृत उद्देश्यों के लिए और तय सीमाओं के अंदर लागू किया गया है। दूसरे शब्दों में कहें तो बजट के तहत अलग योजनाओं/कार्यक्रमों के लिए स्वीकृत संसाधनों की निगरानी एवं मूल्यांकन किया जा सकता है। पूरी तरह विधायी नियंत्रण देने के लिए, संसद तीन वित्तीय समितियों का गठन करती है, इसका मतलब लोक लेखा समिति, अनुमान समिति और सार्वजनिक उपक्रम समितियों से है। ये समितियां आनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर बनाई जाती हैं और पूरे सदन का प्रतिनिधित्व करती हैं।

इन समितियों की सदस्यता छोटी होती है, आमतौर पर इसमें 30 से कम सदस्य होते हैं। उनका छोटा आकार दस्तावेजों का निरीक्षण करने के लिए देश भर में आने जाने को आसान बना देता है। भारत की संसदीय प्रणाली के तहत, सिविल सेवकों को सदन के पटल पर जिरह से छूट मिली हुई है हालांकि, उन्हें इन समितियों की बैठकों में गवाह के रूप में उपस्थित होने के लिए बुलाया जा सकता है और समिति के सदस्यों द्वारा उनसे जिरह भी की जा सकती है। कार्यपालिका पर विधायिका के नियंत्रण के लिए ये एक प्रभावी साधन साबित होता है।

फिगर 6: CAG और कमेटियां

● लोक लेखा कमेटी (पब्लिक अकाउंट कमेटी)

यह एक संसदीय समिति है जिसमें 22 निर्वाचित सदस्य शामिल होते हैं - इनमें 15 लोकसभा से और 7 राज्य सभा से होते हैं। सभी सदस्य एक साल के लिए चुने जाते हैं। सदन में पार्टियों या समूहों के आनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर दोनों सदनों से इन सदस्यों का चुनाव होता है। 
यह समिति सीएजी द्वारा तैयार खातों और ऑडिट रिपोर्ट्स की जांच करती है ताकि यह सत्यापित (वेरिफाई) हो सके कि खातों में बांटे गए पैसे कानूनी रूप से मौजूद थे और उसी उद्देश्य के तहत थे जिसके लिए आवेदन किया गया था। इसके साथ ही खर्च भी उस अथॉरिटी के नियमों के मुताबिक हुआ, जिसके पास उसे नियंत्रण करने का अधिकार है; और हर पुनर्विनियोग (रि-अप्रोप्रिएशन) एक सक्षम प्राधिकारी द्वारा बनाए गए नियमों के तहत किया गया है।
लोक लेखा समिति (पब्लिक अकाउंट्स कमेटी) क्रमशः प्रत्यक्ष करों और अप्रत्यक्ष करों से संबंधित राजस्व प्राप्तियों पर CAG की दो रिपोर्ट्स की भी जांच करती है। इस समिति का महत्वपूर्ण काम यह है कि क्या किसी खास सेवा पर पारित राशि से अधिक राशि खर्च की गई है। किसी मुद्दे पर समिति के निष्कर्ष लोकसभा को प्रस्तुत रिपोर्ट में शामिल होते हैं, जिसे बाद में संबंधित मंत्रालय/विभाग को भेज दिया जाता है। रिपोर्ट की एक कॉपी राज्य सभा के पटल पर भी रखी गई है। मंत्रालय/विभाग को रिपोर्ट में दी गईं निहित सिफारिशों पर कार्रवाई करने और फिर छह महीने के अंदर कार्रवाई का जवाब प्रस्तुत करना होता है।

● प्राक्कलन समिति

इस समिति में लोकसभा से 30 सदस्य शामिल किए जाते हैं, और हर साल इस समिति का गठन होता है। समिति का अध्यक्ष आनुपातिक प्रतिनिधित्व मानकों के मुताबिक समिति के सदस्यों में से चुना जाता है। इन सदस्यों का कार्यकाल एक साल के लिए होता है। प्राक्कलन समिति का उद्देश्य यह तय करना होता है कि सार्वजनिक खर्च को विवेकपूर्ण तरीके से किया जा रहा है और योजनाओं में निहित उद्देश्यों की प्राप्ति हो रही है। 
यह समिति लोकसभा में पेश किए गए अनुमानों की विस्तार से जांच करती है, योजनाओं और कार्यक्रमों का मूल्यांकन करती है और विभिन्न क्षेत्रों में सार्वजनिक खर्च के प्रदर्शन की समीक्षा करती है। लोक लेखा समिति के जैसे ही, किसी विषय पर प्राक्कलन समिति के निष्कर्षों वाली रिपोर्ट लोक सभा में प्रस्तुत की जाती है। इसके बाद इसे संबंधित मंत्रालय/विभाग को भेज दिया जाता है, जिसे आवश्यक कार्रवाई करनी चाहिए और 6 महीने के अंदर की गई कार्रवाई का जवाब देना होता है। 

● सरकारी उपक्रमों संबंधी समिति

इस समिति में 22 सदस्य होते हैं - 15 लोकसभा से और 7 राज्य सभा से चुने जाते हैं. हर पार्टियों से सदस्य आनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर चुने जाते हैं। इस कमेटी पर सार्वजनिक उपक्रमों की रिपोर्ट्स और खातों की जांच करने, सीएजी रिपोर्ट की जांच करने और अलग अलग उपक्रमों में लाए जा सकने वाले सुधारों का सुझाव देने का काम सौंपा गया है।

● विभाग से संबंधित स्थायी समितियां (DRSCs)

विभागीय रूप से संबंधित 24 स्थायी समितियां हैं, जो भारत सरकार के सभी मंत्रालयों/विभागों को उनके अधिकार क्षेत्र में काम करती हैं। इनमें से हर समिति में 31 सदस्य होते हैं - 21 लोकसभा से और 10 राज्य सभा से चुने जाते हैं। इनको क्रमशः लोकसभा अध्यक्ष और राज्य सभा अध्यक्ष नामित करते हैं। इन समितियों का कार्यकाल एक साल का होता है। उनके अधिकार क्षेत्र में आने वाले मंत्रालयों/विभागों के संदर्भ में, उनके काम इस प्रकार हैं।

● अनुदान मांगों पर विचार करना; 

● राज्यसभा के सभापति या लोकसभा के अध्यक्ष द्वारा जैसा भी मामला हो, निर्दिष्ट (रेफर्ड) विधेयकों की जांच करना;

● सालाना रिपोर्ट्स पर विचार करना

● राज्य सभा के सभापति या लोक सभा के अध्यक्ष, जैसा भी मामला हो, द्वारा सदन में प्रस्तुत और समिति को सौंपे गए राष्ट्रीय बुनियादी दीर्घकालिक नीति दस्तावेजों पर विचार।
ये समितियां संबंधित मंत्रालयों/विभागों के रोजाना प्रशासन से संबंधित मामलों पर काम नही करती हैं बल्कि, वे प्रशासन पर संसदीय निगरानी काम करती हैं।
 

4.

सोशल ऑडिट क्या है और ये क्यों जरूरी है?

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सामाजिक अंकेक्षण (सोशल ऑडिट) एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें विकास संबंधी पहल के लिए एजेंसियों द्वारा वित्तीय और गैर-वित्तीय दोनों संसाधनों की जानकारी पब्लिक प्लेटफॉर्म के जरिए जनता के साथ शेयर की जाती है। सार्वजनिक भागीदारी से सामाजिक ऑडिट अन्य ऑडिट से अलग है, जो उन्हें जवाबदेह और पारदर्शी बनाता है। इसके चलते आखिरी व्यक्ति तक विकास पहुंचने का अवसर मिलता है।

सोशल ऑडिट के जरिए प्रशासन पर महत्वपूर्ण निगरानी रखी जा सकती है। ये आम नागरिकों को उनके अधिकारों और अधिकारों को समझने में सशक्त बनाने के लिए एक शक्तिशाली उपकरण है। सोशल ऑडिट से ना सिर्फ सार्वजनिक धारणाओं को व्यक्त करने का मंच मिलता है, बल्कि कार्यक्रम की ताकत और कमजोरियों को भी विस्तार से बताता है।

यह योजनाओं की खासियतों के साथ-साथ उनके कार्यान्वयन पहलुओं पर विस्तार से चर्चा के लिए हितधारकों के एक मंच पर साथ आने की सुविधा देता है। उदाहरण के लिए, CAG न तो हर ग्रामीण सड़क का सत्यापन कर सकता है और न ही लाभार्थियों से अप्रमाणित मौखिक साक्ष्य स्वीकार कर सकता है। यह नागरिक समाज संगठनों (सीएसओ) और सोशल ऑडिट द्वारा संभव है। इसलिए व्यापक मायनों में सीएजी का ऑडिट ही एक सोशल ऑडिट है। फिर भी, यह एक सरकारी प्रक्रिया है जो काफी हद तक सरकारी अधिकारियों और सरकारी ऑडिटर्स तक ही सीमित है।

दूसरी ओर, एक सोशल ऑडिट, ऑडिट प्रक्रिया को और अधिक पारदर्शी बनाने और उससे निकले निष्कर्षों को हितधारकों, यानी सरकारी योजनाओं और सेवाओं का इस्तेमाल करने वाले व्यापक सार्वजनिक डोमेन तक ले जाने की कोशिश करता है। सोशल एडिट (सामाजिक लेखा परीक्षा) की मांग हाल के सालों में स्थानीय स्तरों जैसे पीआरआई, यूएलबी के लिए केंद्र सरकार से मिलने फंड्स और सामाजिक-आर्थिक योजनाओं से संबंधित कामों के ट्रांसफर में लगातार बदलाव के कारण बढ़े हैं। 

CAG ऑडिट से उलट, सोशल ऑडिट सहभागी प्रक्रियाएं हैं जिनके जरिए समुदाय के सदस्य सरकारी कार्यक्रमों के कार्यान्वयन की निगरानी करते हैं। ये या तो ग्राम-स्तरीय सतर्कता और निगरानी समितियों या सामुदायिक संगठनों के जरिए सामाजिक कार्यक्रमों को जांचने, आधिकारिक रिकॉर्ड वेरिफाई करने और जमीनी स्तर पर कार्यान्वयन में समस्याओं की पहचान करने के लिए किए जाते हैं।

सोशल ऑडिट में सार्वजनिक सुनवाई, लाभार्थियों को सीधे प्रतिक्रिया देने के लिए एक मंच देता है - बड़े पैमाने पर होने वाले कार्यक्रम जिसमें समुदाय के सदस्य ऑडिट रिपोर्ट में सामने निष्कर्ष को स्थानीय अधिकारियों को पेश करते हैं, जिन्हें तब सवाल और जवाब देने का अवसर दिया जाता है। सोशल ऑडिट के जरिए सामुदायिक निगरानी को संस्थागत बनाने के लिए एक दृष्टिकोण के रूप में देखा जाता है, क्योंकि इसमें सरकार और नागरिक समूहों दोनों के प्रयास शामिल होते हैं।

CAG की औपचारिक ऑडिट में सामाजिक लेखा परीक्षकों (सोशल ऑडिटर्स) की भागीदारी पारस्परिक रूप और आम लोगों के फायदे के लिए है। इसके माध्यम से, सोशल ऑडिटर्स को व्यापक और औपचारिक/कानूनी मंच में अपने काम की जगह तलाशने में मदद मिलती है। CAG द्वारा ऑडिट की तकनीकों और उद्देश्यों के बारे में जानकारी देने से व्यावसायिक विकास के स्तर पर उन्हें लाभ होगा।

सोशल ऑडिट के लिए संवैधानिक संशोधनों द्वारा एक स्थान बनाया गया है, जिसमें माना जाता है कि ग्राम पंचायत के अकाउंट को ग्राम सभा के सामने रखा जाना चाहिए, साथ ही RTI अधिनियम, 2005 द्वारा भी होना चाहिए। एक बेहतर कदम के रूप में, राजस्थान और आंध्र प्रदेश की राज्य सरकारों ने ग्राम सभाओं के जरिए और गैर सरकारी संगठनों के एक संघ के साथ साझेदारी में सोशल ऑडिट को अपनी मॉनिटिरिंग सिस्टम के हिस्से के रूप में शामिल करने की पहल की है। 

आम जनता बजट ऑडिट के साथ कैसे जुड़ सकती है?

ऐसे कई तरीके हैं जिनसे आम जनता बजट ऑडिट के साथ जुड़ सकती है। सबसे पहले, ऑडिट रिपोर्ट उसी के लिए एक महत्वपूर्ण जरिया है, जो उन्हें सरकार के काम के बारे में जागरूक करने के साथ और अधिक जवाबदेही की मांग में मदद करती है। दूसरा, सोशल ऑडिट में आम जनता की भागीदारी भी तंत्र को मजबूत करने में मदद करती है। इसके अलावा, CSOs बजट ऑडिट के साथ सार्वजनिक जुड़ाव को मजबूत करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। इसे करने के कुछ तरीके इस प्रकार लिस्टेड है।

● पब्लिक फाइनेंशियल मैनेजमेंट पर नागरिक साक्षरता का निर्माण 
● भ्रष्टाचार के संभावित मामलों का पता लगाने के लिए नेटवर्क और विशेषज्ञता का इस्तेमाल करना और ऑडिट संस्थानों को इनकी रिपोर्ट करना।
● परफॉर्मेंस और खरीद का ऑडिट करने के लिए ऑडिट संस्थानों की सीमित क्षमता को बढ़ाना 
● ऑडिट अनुशंसाओं (विधायिकाओं/संसद के साथ) को लागू करने के लिए कार्यपालिका पर निगरानी के लिए दबाव बनाना

इस प्रकार, ऑडिट प्रक्रियाओं के साथ सार्वजनिक जुड़ाव में न केवल जनता के प्रति सरकारी जवाबदेही बढ़ाने बल्कि सरकारी कार्यक्रमों के प्रदर्शन और बजटीय नीतियों के कार्यान्वयन में सुधार करने की अपार संभावनाएं हैं।   

 

 

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