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VI

पंचायत बजट

1.

ग्रामीण स्थानीय निकाय क्या होते हैं? (RBLs)

Section titled ग्रामीण स्थानीय निकाय क्या होते हैं? (RBLs)

भारत एक विशाल देश है, सिर्फ भौगोलिक तौर पर नहीं बल्कि आबादी के हिसाब से भी. इस विशालता के लिए एक ऐसी राजनीतिक शासन व्यवस्था की जरूरत पड़ती है, जो जनता की अलग-अलग आवश्यकताओं को पूरा कर सके. वर्तमान राजनीतिक शासन प्रणाली को इसी के मुताबिक बनाया गया है, जहां सरकार के तीन स्तरों को अलग-अलग भूमिकाएं और जिम्मेदारियां सौंपी गई हैं. 

ये तीन स्तर केंद्र सरकार, राज्य सरकार और स्थानीय सरकार/निकाय होते है. स्थानीय निकाय को दो अलग कैटेगरी में बांटा गया है- शहरी स्थानीय निकाय (ULBs) और ग्रामीण स्थानीय निकाय (RLBs).
इस सेक्शन में हम ग्रामीण स्थानीय निकाय पर केंद्रित है जिन्हें पंचायती राज संस्थानों (पीआरआई) के नाम से भी जाना जाता है.

जैसा कि नाम से ही पता चलता है- ग्रामीण स्थानीय निकाय, ग्रामीण क्षेत्रों पर शासन के लिए बनाया गए संस्थान है.

ग्रामीण स्थानीय निकायों के प्रकार

शासित क्षेत्र के आधार पर, RLBs को तीन अलग-अलग प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है. 

1. ग्राम पंचायतें- ये पंचायतें ग्रामीण स्तर पर काम करती हैं. आमतौर पर ग्राम पंचायत के मुखिया को 'सरपंच' कहा जाता है.

2. मंडल या तालुका पंचायत या पंचायत समिति - ये निकाय ब्लॉक स्तर पर काम करते हैं, और आमतौर पर एक अध्यक्ष या डिप्टी चेयरपर्सन के नेतृत्व में काम करते हैं. ये पंचायतें ग्राम पंचायतों और जिला पंचायतों के बीच एक कड़ी के रूप में काम करती हैं. 

3. जिला पंचायत या जिला परिषद- ये स्थानीय निकाय जिला स्तर पर काम करते हैं. इसका कार्यालय जिला मुख्यालय में मौजूद होता है. सभी मंडल पंचायतों के अध्यक्ष जिला परिषद के सदस्य होते हैं. ये सदस्य जिला पंचायत के अध्यक्ष के लिए मतदान करते हैं. 'जिला कलेक्टर', या 'जिला मजिस्ट्रेट' या 'डिप्टी कमिश्नर' जिला पंचायत के संयोजक सचिव होते हैं. 

जिला पंचायत और मंडल पंचायत के केस में, उनके क्षेत्र जिले और ब्लॉक की प्रशासनिक सीमाओं के मुताबिक होते हैं. एक ग्राम पंचायत का क्षेत्र किसी गांव विशेष से मेल नहीं खाता है. यह आबादी के आधार पर बनाया गया है, और इसमें एक से अधिक गांव शामिल हो सकते हैं.

वो राज्य या केंद्र शासित प्रदेश जहां आबादी 20 लाख से कम है, वहां पीआरआई सिर्फ दो स्तरों पर होंगे, ग्राम पंचायत और जिला पंचायत. भाषा के मुताबिक इन्हें अलग अलग क्षेत्रों में अलग नामों से बुलाया जाता है जैसे जिला, मंडल या ग्राम.

फिगर 1: जानिए तीन स्तरीय पंचायत एक दूसरे से कैसे जुड़ी हुई हैं 

2.

ग्रामीण स्थानीय निकाय की भूमिका और जिम्मेदारियां क्या हैं?

Section titled ग्रामीण स्थानीय निकाय की भूमिका और जिम्मेदारियां क्या हैं?

केंद्र और राज्य सरकारों की तरह, ग्रामीण स्थानीय निकाय को भी भारत के संविधान से अपनी शक्तियां, काम और जिम्मेदारियां मिलती हैं.

संविधान में क्या लिखा है?

1949 में बनकर तैयार हुआ संविधान में, पंचायतों की कल्पना स्वशासन की इकाइयों के रूप में की गई थी. संविधान में निर्देशित सिद्धांत कुछ इस प्रकार है 
"राज्य ग्राम पंचायतों का संगठन करने के लिए कदम उठाएगा और उनको ऐसी शक्तियां और अधिकार देगा जो उन्हें स्वायत्त शासन की इकाइयों के रूप में काम करने योग्य बनाने के लिए जरूरी हों."

(आर्टिकल 40, भारतीय संविधान 1949)

हालांकि, पंचायतें स्थानीय शासन की उस भूमिका को हासिल नहीं कर सकीं जिसकी परिकल्पना की गई थी. टिप्पणीकार इसके पीछे अलग अलग कारण बताते हैं. जैसे - यह केवल एक निर्देशक सिद्धांत है, कोई अनिवार्य नीति नहीं है. साथ ही सीमित शक्तियां, सीमित संसाधन, विभिन्न सामाजिक-राजनीतिक कारणों के चलते सार्वजनिक गैर-भागीदारी जैसे भी कई कारण हैं.

सालों से, अलग-अलग समितियों ने ग्रामीण स्थानीय निकायों के कामकाज में सुधार के लिए अलग-अलग सिफारिशें की हैं. इस प्रक्रिया में बड़ा बदलाव साल 1992 में आया, जब ग्रामीण स्थानीय निकायों को लेकर संविधान में जरूरी बदलाव किए हैं. 

संविधान में बदलावों को 73वें संशोधन के रूप में जाना जाता है. इस संशोधनों के माध्यम से राज्यों पर पंचायती राज अधिनियमों को अधिनियमित करने संवैधानिक दायित्व दिया गया. संविधान में पंचायतों की संरचना, चुनाव, आरक्षण, अवधि, राज्यों और स्थानीय निकायों के बीच संसाधन साझा करने के लिए राज्य वित्त आयोग के गठन जैसे ठोस प्रावधान हुए. हालांकि राज्यों को भौगोलिक और राजनीतिक-प्रशासनिक व्यवस्था के मुताबिक पंचायतों को व्यवस्थित करने के लिए कुछ हद तक आजादी भी दी गई है. 

 ग्रामीण स्थानीय निकायों की शक्तियां और काम क्या होते हैं?

भारतीय संविधान के मुताबिक राज्यों को कानून बनाने की जरूरत है जिससे ग्रामीण स्थानीय निकाय के पास स्वशासन की इकाइयों के रूप में काम करने के लिए जरूरी शक्तियां हों. संविधान की11वीं अनुसूची में उन क्षेत्रों की सूची दी गई है, जहां ग्रामीण स्थानीय निकाय को काम करना चाहिए.

ऐसे 29 विषय हैं जहां ग्रामीण स्थानीय निकायों के पास शक्ति है, वे हैं- 

फिगर 2: ग्रामीण स्थानीय निकायों की शक्तियां और काम (संविधान की 11वीं अनुसूची)

ये 29 विषय संविधान में दिए गए हैं लेकिन ये एक सांकेतिक सूची है अर्थात इन्हें अमल करना राज्यों के लिए अनिवार्य नहीं है. राज्यों को पंचायती राज अधिनियमों को तहत अपने नियम बनाने के लिए कुछ आजादी दी गई है. इसलिए ग्रामीण स्थानीय निकायों को सौंपी गई तमाम शक्तियों और कामों में राज्यों के मत अलग अलग हो सकते हैं. 

इन 29 विषयों में खुद काम करने के अलावा पंचायतें केंद्र या राज्य की योजनाओं में क्रियान्वयन की प्रशासनिक इकाई के रूप में भी कार्य कर सकती हैं.
 

3.

ग्रामीण स्थानीय निकायों को फंड कहां से मिलते हैं?

Section titled ग्रामीण स्थानीय निकायों को फंड कहां से मिलते हैं?

पंचायतें मुख्य रूप से चार अलग-अलग स्रोतों से फंड्स या वित्तीय संसाधन जुटा सकती हैं. इनमें पहला खुद को मिलने वाले टैक्स से होने वाली कमाई; दूसरा खुद के गैर-टैक्स से होने वाली कमाई; तीसरा केंद्र और राज्य सरकारों से मिलने वाला फंड और चौथा उधार लेना शामिल है. अधिकांश ग्रामीण स्थानीय निकायों इन 4 स्रोतों की पूरी क्षमता का अभी भी पूरी तरह इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं. 

 टैक्स से होने वाली कमाई

ग्रामीण स्थानीय निकायों के लिए ये कमाई का प्रमुख स्रोत होता है.
घर टैक्स/प्रॉपर्टी टैक्स- ये आमतौर पर अचल संपत्ति जैसे प्रॉपर्टी, जमीन आदि पर लगाया जाने वाला टैक्स होता है.

प्रोफेशनल टैक्स- यह उन पेशेवर लोगों पर लगाया जाने वाला टैक्स है, जिन्होंने ग्रामीण स्थानीय निकायों या कुछ अन्य कमर्शियल गतिविधियों वाले इलाके में वेतन वाली नौकरी कर रहे हैं. 

व्हीकल टैक्स/वाहन कर- यह ग्रामीण स्थानीय निकायों के अंदर वाहनों की बिक्री/इस्तेमाल पर लगाया जाता है. ये टैक्स आमतौर पर वाहन की कीमत के प्रतिशत के रूप में तय किया जाता है.

मेले और मनोरंजक गतिविधियों पर लगने वाला टैक्स- यह कमर्शियल एंटरटेनमेंट के अलग अलग रूपों पर लगाया जाता है, जैसे - मूवी थिएटर, खेल आयोजन, कला प्रदर्शनियां, मनोरंजन पार्क आदि.

विज्ञापन पर लगने वाला टैक्स - यह आम तौर पर बिल्डिंग या जमीन पर दिखने वाले विज्ञापन (बैनर/होर्डिंग्स) पर लगाया जाता है. 

कारखानों पर टैक्स - यह पंचायत के अंदर मौजूद निर्माण इकाइयों पर लगने वाला टैक्स है

जैसा कि पहले भी बताया गया है कि, अलग-अलग पंचायतों को उनकी शक्तियां अलग-अलग राज्यों के अपने पंचायत एक्ट के जरिए मिलती हैं. इसलिए, ये सभी प्रकार के टैक्स देश में सभी पंचायतों के लिए नहीं हैं, क्योंकि राज्य स्तर पर ये अलग अलग हैं. इसके अलावा, हालांकि पंचायतों के पास टैक्स लगाने का अधिकार है, लेकिन हकीकत में देखा गया है कि बहुत कम ग्रामीण स्थानीय निकाय वास्तव में इन टैक्स को लागू कर पाते हैं.
ऐसा ना कर पाने का कारण स्थानीय सामाजिक-राजनीतिक कारण, या स्थानीय सरकारों के पास टैक्स कलेक्शन को लागू करने के लिए प्रशासनिक क्षमता की कमी भी हो सकते हैं.

गैर-टैक्स से होने वाली कमाई

ग्रामीण स्थानीय निकायों की स्वयं के गैर-टैक्सों से भी कमाई होती है. वो प्रमुख स्रोत इस प्रकार हैं:
• पानी का शुल्क: यह शुल्क पीने के पानी, खेती या औद्योगिक मकसद के लिए इस्तेमाल होने वाली पानी की आपूर्ति पर लगाया जाता है.

• सड़क की सफाई का शुल्क/ जल निकासी शुल्क: यह शुल्क ग्रामीण स्थानीय निकायों द्वारा सड़कों की सफाई, कचरा जमा करना या जल निकासी बनाए रखने के लिए नियोजित सेवा के बदले लगाया जा सकता है.

• सार्वजनिक शौचालयों का स्वच्छता शुल्क: यह सार्वजनिक शौचालयों में इस्तेमाल करने वालों से शुल्क के रूप में लिया जाता है.

• पंचायत शेल्टर के इस्तेमाल पर शुल्क: पंचायतों के मालिकान वाले भवन/भूमि जिनका नियमित इस्तेमाल नहीं किया जाता है, उन्हें शुल्क के लिए पट्टे पर दिया जा सकता है.  

• अस्पताल और स्कूलों का शुल्क: स्कूलों और अस्पतालों द्वारा दी जाने वाली कुछ सेवाएं पर शुल्क लगता है. ये शुल्क इस्तेमाल करने वालों से लिया जाता है.  

• बाजार और साप्ताहिक बाजार का शुल्क: ग्रामीण क्षेत्रों में, बाजार आमतौर पर सार्वजनिक भूमि पर लगाए जाते हैं. ऐसे बाजारों पर शुल्क लगाया जा सकता है.

• जन्म और मृत्यु प्रमाण पत्र रजिस्ट्रेशन फीस: ग्रामीण स्थानीय निकायों को जन्म और मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करने का अधिकार है. वे इसके लिए एक निश्चित शुल्क ले सकते हैं.     

टैक्स के समान, सभी गैर टैक्स कमाई के स्रोत सभी पंचायतों के लिए उपलब्ध नहीं हैं क्योंकि यह पंचायतों को लेकर राज्य पर निर्भर करता है.

केंद्र सरकार और राज्यों से मिलने वाला फंड

संविधान के 73वें संशोधन में एक प्रावधान मिलता है, जहां राज्य सरकारों को हर पांच साल में राज्य वित्त आयोग (एसएफसी) का गठन करना होता है. एसएफसी राज्य और स्थानीय निकायों (ग्रामीण और शहरी दोनों) के बीच संसाधनों के बंटवारे को लेकर सिफारिशें करता है.

इस प्रकार, राज्य सरकार से मिलने वाला फंड ग्रामीण स्थानीय निकायों के लिए कमाई का एक अन्य प्रमुख स्रोत है. इन कमाई को मोटे तौर पर दो हिस्सों में बांटा गया है.

संसाधनों की अनिवार्य साझेदारी: यह एसएफसी की सिफारिशों पर आधारित होता है. जो आम तौर पर संबंधित राज्यों द्वारा जुटाए संसाधनों के विभाज्य पूल में हिस्सा है. राज्य के कानूनों के हिसाब से विभाज्य पूल को परिभाषित किया जा सकता है.

विवेकाधीन/सहायता अनुदान: स्थानीय निकायों को समय-समय पर राज्य सरकारों से ऐसी सहायता मिलती है. सहायता अनुदान की कोई खास प्रणाली नहीं होती है, और ये सरकार की नीतियों पर निर्भर करते हैं. अनुदान या तो टैक्स प्रयासों को बढ़ावा देने के लिए या सेवाओं के रखरखाव को बरकरार बनाए रखने के लिए दिए जाते हैं.

हालांकि, संवैधानिक रूप से सभी राज्यों को हर पांच साल में एसएफसी का गठन करना होता है, लेकिन सभी राज्यों ने ऐसा नहीं किया है. दूसरी तरफ, केंद्रीय वित्त आयोग ने केंद्र सरकार को 10वें वित्त आयोग से शुरू होने वाले स्थानीय निकायों के लिए अनुदान देने की सिफारिश की है.

मोटे तौर पर, केंद्र सरकार से ग्रामीण स्थानीय निकाय फंड निम्नलिखित रूप से ले सकता है.

निश्चित अनुदान: ये अनुदान आम तौर पर राष्ट्रीय योजनाओं के हिस्से के रूप में विकास कार्यों के लिए ग्रामीण स्थानीय निकायों को दिए जाते हैं. उदाहरण के लिए - पंद्रहवें वित्त आयोग की अवधि के तहत, पंचायतों को 'जल जीवन मिशन' वाली केंद्र की योजना को लागू करने के लिए फंड मिलता है. इसी तरह, ग्रामीण स्थानीय निकायों भी अन्य केंद्र प्रायोजित योजनाओं (CSS) जैसे मनरेगा आदि को लागू करने के लिए फंड मिलता है.

संयुक्त अनुदान: ये वो अनुदान हैं, जो ग्रामीण स्थानीय निकाय अपने विवेक से खर्च कर सकते हैं. सैद्धांतिक रूप से यह धनराशि संविधान की ग्यारहवीं अनुसूची में सूचीबद्ध 29 विषयों पर खर्च होनी है.

फिगर 3: ग्रामीण स्थानीय निकायों को मिलने वाले फंड के स्रोत 

कर्ज या देनदारियां

ग्रामीण स्थानीय निकाय, सरकार के अन्य स्तरों की तरह, उधार के जरिए फंड जुटा सकती हैं. हालांकि अभी इस स्रोत के उपयोग ग्रामीण निकायों द्वारा नहीं किया जा रहा है.

उधार के जरिए फंड जुटाने की क्षमता लोन चुकाने की क्षमता के साथ-साथ इन उधारों से पर दी जाने वाली ब्याज पर निर्भर करती है. वर्तमान में, अधिकांश ग्रामीण स्थानीय निकायों के पास केंद्र और राज्य सरकारों से मिलने वाले फंड्स के अलावा खुद के संसाधनों के महत्वपूर्ण और नियमित स्रोतों की कमी है.

इन चार स्रोतों के अलावा, कुछ राज्यों में, कमाई के कुछ अतिरिक्त स्रोत भी हो सकते हैं. उदाहरण के लिए, राजस्थान और केरल जैसे राज्यों में, ग्रामीण स्थानीय निकाय की बजट बुक्स में एमपी/एमएलए लोकल एरिया डेवलपमेंट (एलएडी) फंड्स को भी दर्शाया जाता है, और केरल में, इन निकायों को राज्य योजनाओं को लागू करने के लिए राज्य सरकार फंड्स मिलता है हालांकि, इन विशिष्ट स्रोतों का अभ्यास कुछ ही राज्यों में किया जाता है.
 

 

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